हरेक फूल जैसे गुलाब नहीं होता,                                                                                                                                                                  हर शख़्स भी अहबाब नहीं होता।

शेर तो कई-कई होते हैं ग़ज़ल में,
हर शेर,किंतु लाजवाब नहीं होता!

कुछ बातें चाहती हैं तफसील-बयां,
काफ़ी गर लब्बोलुआब नहीं होता!

अलग होती है सब की ही फ़ितरत,
एक-सा तो ढोल-रबाब नही होता!

वक्त की पकड़ बहुत रखता है वह,
तपा हर वक्त आफताब नहीं होता!

ज़िन्दगी बदलती है कई-कई रूप,
हर उम्र में देखो शबाब नहीं होता!

अंधेरे अगर ऐसे सियाह नहीं होते,
ऐसा ख़ूबसूरत महताब नहीं होता!

लिख लेता उस चेहरे पे भी ग़ज़ल,
उस पर जो वह नक़ाब नहीं होता!

किस्मत तो जाती है मर्जी से कहीं,
वर्ना हर-इन्सान नवाब नहीं होता?
             
 'MAAHIR'