श्रीमद्भगवद्गीता  :

कर्मक्षेत्रे - रणक्षेत्रे : अध्याय ४ :
ज्ञानकर्मसंन्यास योग :
क्रमश :  श्लोक ११ :

श्रीभगवान  सभी जीवों पर कृपा करते हैं:

ये यथा माम् प्रपद्यन्ते तान् 
तथा एव भजामि अहम्  ।
मम् वर्त्म अनुवर्तन्ते
मनुष्या :  पार्थ सर्वश : ॥११॥

जो जैसा भजता है मुझको
वैसा ही भजता मैं उसको ।
करते सब अनुसरण मेरा ही 
हे पार्थ ! जान ले तू यह भली विधि
॥११॥

विवेचन:

इससे पिछले श्लोक में वर्णन आया है कि कैसे  ज्ञान- तप से
पवित्र मनुष्य मेरे को ही प्राप्त हो जाते हैं । इसलिए श्री भगवान आश्वस्त करते हैं कि नहीं नहीं मैं सभी को जो मुझे जिस प्रकार भजता है उसको मैं उसी भाव से मिल जाता हूँ ।
PAAVAN