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PAVAN KUMAR SHARMA,' PAAVAN &MAAHIR
श्रीमद्भगवद्गीता :
कर्मक्षेत्रे - रणक्षेत्रे : अध्याय ४ :
ज्ञानकर्मसंन्यास योग :
क्रमश : श्लोक ११ :
श्रीभगवान सभी जीवों पर कृपा करते हैं:
ये यथा माम् प्रपद्यन्ते तान्
तथा एव भजामि अहम् ।
मम् वर्त्म अनुवर्तन्ते
मनुष्या : पार्थ सर्वश : ॥११॥
जो जैसा भजता है मुझको
वैसा ही भजता मैं उसको ।
करते सब अनुसरण मेरा ही
हे पार्थ ! जान ले तू यह भली विधि
॥११॥
विवेचन:
इससे पिछले श्लोक में वर्णन आया है कि कैसे ज्ञान- तप से
पवित्र मनुष्य मेरे को ही प्राप्त हो जाते हैं । इसलिए श्री भगवान आश्वस्त करते हैं कि नहीं नहीं मैं सभी को जो मुझे जिस प्रकार भजता है उसको मैं उसी भाव से मिल जाता हूँ ।
This entry was posted on October 4, 2009 at 12:14 pm, and is filed under
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