Article Published by :
PAVAN KUMAR SHARMA,' PAAVAN &MAAHIR
श्रीमद्भगवद्गीता :
कर्म़क्षेत्रे - रणक्षेत्रे अध्याय ४ :
ज्ञानकर्मसंन्यास योग :
क्रमश : श्लोक १० :
आत्म से परमात्म की प्राप्ति की ओर :
वीतरागभयक्रोध :
मन्मया : माम् उपाश्रिता : ।
बहवा : ज्ञानतपसा : पूता :
मद्भावम् आगता : ॥१०॥
बीत गए राग,भय,क्रोध
जिनके हों
लगा मन जिनका मुझमें हो ।
केवल मेरा ही आश्रय जिन्हें हो
ऐसे अनेक ज्ञानी और तप :पूत
भक्त प्राप्त कर चुके हैं मेरे
स्वरूप को ॥१०॥
श्लोक के अर्थ के साथ इसे पढ़िए:
रामचरितमानस में ऋषि वाल्मीकि ने भगवान श्री राम को जिन चौदह
स्थानों में रहने का आदेश दिया उनमें सर्वोच्च स्थान जो बताया ,
वह है :
ज़ाहि न चाहिअ कबहुँ कछु
तुम्ह सन सहज सनेहु ।
बसहु निरंतर तासु मन
सो राउर निज गेहु ॥१३१/अयोध्या कांड ॥
यही यहाँ “ वीतरागभयक्रोध: “
में कहा गया है । राग के निवृत्त हो जाने पर ममता ,कामना , भय , लोभ , क्रोध , आदि सभी मन की
दुर्भावनाएँ समाप्त हो जाती हैं ।
PAAVAN
This entry was posted on October 4, 2009 at 12:14 pm, and is filed under
. Follow any responses to this post through
RSS. You can
leave a response, or trackback from your own site.
Post a Comment