POEMS BY PAVAN KUMAR   'PAAVAN'(MAN KI SFURNA)

कमल का खिलता हुआ फूल । 

जिस रोज़ वो कमल का फूल खिला मेरा दिमाग शांत न था । 
और मुझे पता भी न चला कि मेरी डोली में कोई फूल भी है । 
केवल अभी मुझे निराशा ने घेरा है और मैं दिवास्वप्न से जागा हूँ । 
तब मुझे दक्षिणी हवाओं की खुश्बूए महसूस हुई हैं । 
उनकी मधुरता ने मेरे दिल को दुखाया है और एहसास हुआ है मुझको,
कि वसंत की स्फुरित श्वासों में एक पूर्णता की गर्मी है । 
जिसका मुझे पता न था कि वो इतनी करीब और अपनी है । 
और मेरा दिल कमल सा खिल उठा, पूर्णता के साथ । 

सब्र इसलिये जरूरी है

अँधेरा अवश्य ख़त्म होगा, सुब्हा भी आएगी ।
और आपकी आवाज़ आकाश चीरती रश्मि सी आएगी । 
फ़िर आपके शब्द गीत के पंख लेकर चिड़ियों के घोंसलों से निकलेंगे । 
और वे गीत फूल बन जायेंगे मेरे मन उपवन के ।

पानी पर तैरता घर । 
जब से मैं इस नाव वाले घर में बैठा हूँ । 
मैं ये सोचता हूँ कि काश ये मेरा घर होता । 
और मैं घंटों इसके अंदर बैठा, यूँ ही ताकता रहता । 
उस बसंत को जिसने पत्ते झाड़े हैं और फूल खिलाये हैं । 
और अब मैं उन मुरझाते फूलों के बोझ से दबा बैठा हूँ । 
लहरें उठ कर उछाल करती हैं, उस अँधेरी सी गली आँगन में । 
और मेरे मन उपवन में पीली पत्तियाँ सी झड़ती हैं, और कहती हैं  
तुम किस खालीपन को रह रह कर के तकते हो,
क्या तुम्हें एक उत्साह आता हुआ नहीं दिखता । 
वो जो स्वर दूर सुनाई देता है, इस झील के दूसरे किनारे से । 
और वो घर नज़र नहीं आता, वहाँ दूर खड़ी उस नाव में ।
दोस्त, मेरा हमसफ़र । 
क्या इस तूफानी रात में तुम मेरे साथ हो ए दोस्त मेरे । 
ये मेरी प्रेम से भरी मुलाकात है तुम्हारे साथ । 
जिस पर आकाश भी निराशा से रोता है । 
आज की रात मैं जी भर के सोऊँगा । 
और जब भी मैं दोबारा बाहर को देखूँगा । 
अंधकार ही नज़र आएगा मुझे तुम्हारे बिना । 
मुझे अन्यथा कुछ भी नज़र नहीं आता,
तुम्हारा सुझाया रास्ता भी तुम बिना नहीं भाता । 
इस नीली सी नदी का कहाँ है छोर ?
और उस पीले से जंगल का नहीं कोई ओर । 
और उन दोनों ही से तुम चीर कर निकलते हो ;
केवल मेरे लिये ए दोस्त, सिर्फ मेरे लिये ।