POEMS BY PAVAN KUMAR SHARMA 'PAAVAN'(MAN KI SFURNA)

वो कौन है 

अपनी भावी की तलाश में रास्ते पर मैं अकेला ही निकला था ।
मगर वह कौन है जो इस शांत अँधेरे में मेरा पीछा करता है ?
उससे बचने के लिए मैं बाज़ू में हटता हूँ मगर बच नहीं पाता ।
वो अपने क़दमों से पृथ्वी को रगड़ कर धूल उड़ाता है ।
मेरे द्वारा उच्चारित हर शब्द उसकी आवाज़ में खो जाते हैं ।
हाँ, ईश्वर वो और कोई नहीं मेरी स्वयं की अंतर आत्मा है ।
फिर भी मैं उसके साथ तुम्हारे द्वार पर आना नहीं चाहता हूँ प्रभु !

संसार की कैद में बंद कौन 

कैदी तू ये बता कि कौन तुझे यहाँ बाँध गया ?
वो मेरा मालिक ही है, जो मुझे बाँध गया ।
मैं यह सोचता था कि धन और ताकत में मैं सब से बेहतर बन जाऊँगा ।
और मेरे मालिक की वजह से मैंने मेरी स्वयं की धन की तिज़ोरी बनाली ।
और फिर थक कर उस बिस्तर पर सो गया जो मेरे मालिक का था ।
और जब मैं जागा तो मैंने खुद को उसी लक्षागृह में कैद पाया ।
कैदी बता वो कौन था जो न टूटने वाली इन जंजीरों से तुझे बाँध गया ।
वो मैं ही था जिसने सावधानी से स्वयं को इन जंजीरों में बाँध लिया ।
मैं सोचता था कि मैं अजय शक्तियों से इस विश्व को बंधक बना लूँगा ।
और मैं स्वतंत्र तथा अन व्यथित रह जाऊँगा ।
इसलिए अनवरत मेहनत से मैंने इन जंजीरों का निर्माण किया ।
असहनीय तपिश और चोटों से इन्हें ढाल लिया ।
और जब इन जंजीरों के बनाने का काम पूरा हुआ ।
और उनकी सभी कड़िया अटूट और मजबूत बन गई ।
तो मैंने स्वयं को ही इनसे बँधा पाया ।

मुक्त प्यार 

इस जहाँ में जो भी मुझे प्यार करता हैं मुझे मजबूती से जकड़े है ।
लेकिन यह जकड़ उनके प्यार की ज्यादा है शरीरों की नहीं ।
क्या तुम मेरे प्रभु इनसे मुझे छुड़ा सकते हो ?
मैं कहीं उन्हें भूल न जाऊँ, अत: वे कभी मुझे अकेला छोड़ते ही नहीं ।
मगर दिन एक एक कर निकल जाते हैं और दिखता भी नहीं ।
और मैं अगर प्रार्थना में तुम्हें बुलाऊँ नहीं और अपने हृदय में तुम्हें बसाऊँ नहीं ।
तो भी तुम्हारा प्यार सदैव मेरे प्यार का इंतज़ार करता है ।
तेरा प्यार मुक्त है हर बंधन से वो मेरा मुख़्तार नहीं ।