POEMS BY PAVAN KUMAR 'PAAVAN' (MAN KI SFURNA)

 क्षण मात्र का समर्पण 

मुझे क्षण मात्र के लिए अपने पास बैठने दे ।
मेरे लंबित कार्यो को मैं बाद में कर लूँगा ॥
मेरे मुख पर ही नहीं हृदय में भी शांति और सुख नहीं ।
और कार्य तो सब अंतहीन श्रम , तट विहीन समुद्र हैं॥
आज मेरे दर पर ऋतुराज वसंत आया है और बुला रहा है ।
भँवरे और मधु मक्खियाँ, फूलों पर गुनगुना रहे हैं ॥
आपके समक्ष बैठ कर शांति से गाने को मन करता है ।
इसी परम शांति और ख़ुशी में मेरी मुक्ति निहित है 


प्यार का दीपक  

प्रकाश ! कहाँ है प्रकाश ?
प्यार के प्रकाश पुंज को जलाओ। 
मेरे मन की दीप ज्योति प्रकाशित नहीं है,
क्या यह ज्योति बुझ गई है, जलते जलते । 
मन मेरा दुःखों की दस्तक से बुझ गया है,
लेकिन परमात्मा का सन्देश है कि इसे जलाओ । 
दुःखों की कालिमा में प्रेम और विश्वास की ज्योति ।
आकाश में काले बादल छाये हैं और निरंतर वर्षा जारी है ,
मैं जानता हूँ कि क्या मुझे उद्वेलित कर रहा है,
क्षणेक की बिजली की कौंध में आँखें चुँधिया गई हैं  
लेकिन मन मेरा प्रेम के उस प्रकाश को ढूंढता है ,
प्रकाश ! कहाँ है प्रकाश ?
इस ज्योति को प्रेम की ज्योति से जलाओ ।
काली अँधेरी रात फिर से घिर आई है,
समय को यूँ ही व्यर्थ न जाने दो अँधेरे में ।
प्रेम की ज्योति से जीवन के दीपक को जलाओ ।