POEMS BY PAVAN KUMAR 'PAAVAN'(MAN KI SFURNA)
पिया मिलन की आस (एक अनहुई मुलाक़ात )
जो गीत मैं सुनाने आया हूँ
वो अनसुना है अभी तक ।
मैंने कई दिनों तक इस गीत
को, सुरों को साधा और सजाया है ॥
कभी सुर नहीं सज पाये तो
कभी बोल नहीं सध पाये मगर ।
मेरे हृदय में इस गीत के
पूरा न हो पाने का दर्द है ॥
बहार तो आई है, मगर गुलशन नहीं खिल पाया है ।
घर के बाहर सड़क पर पड़ते
उसके क़दमों की चाप सुनता हूँ ॥
मगर न उसको देखा है, और न उसकी आवाज़ सुनी है मैंने ।
उसके लिए जमीं पर बिस्तर
बिछाने में दिन मेरा बीत गया ॥
मगर अभी संध्या का दीया जला
नहीं और वो भीतर आ न सका ।
मुलाक़ात की उससे सिर्फ आशा
है, मगर मुलाक़ात अभी बाकी है ॥
कैद और अस्तित्व
वो जिसे मेरे नाम से जाना
जाता है, इस कैद में बैठा रो रहा है ।
और मैं इसी कैद की दीवारों
को पक्का और पुख्ता कर रहा हूँ ॥
इस कैद की पुख्ता दीवारों
के साये में अस्तित्व दबा जा रहा है ।
जबकि मैं इस कैद की दीवारों
पर पलस्तर चढ़ा रहा हूँ ॥
चिंतित हूँ कि इसमें कही
कोई छेद न छूट जाये रोशनी के लिए ।
और लगातार मेरा अस्तित्व
गुम हो रहा है इस के पीछे ॥
भीतर की यात्रा
मेरे भीतर की यात्रा लम्बी
भी है और समय भी ज्यादा लेती है ।
लेकिन मैं सूर्योदय के साथ
ही निकल पड़ा इस यात्रा लिये,
संसार की वीरानियों में
भटकता, ग्रहों और सितारों से भी आगे ।
पर ये वो दूरी थी जिसका
गंतव्य मेरे सबसे करीब निकला ,
ठीक वैसे ही जैसे आसान राग
को सीखना बहुत मुश्किल है ।
क्यूंकि भीतर को पाने के
लिये बाहर को खंगालना पड़ता है,
दूर दूर तक इसे खोजती हुई
थकी आँखों को मूँदना
पड़ता है ।
तब ये लगता है कि उस खोज़ का
मरकज तो खुद के अंदर है,
और फिर अंतस कि विकलता, आँसुओं का सैलाब बन के बहती है ।
जो बाहर के पूरे जगत को बहा
ले जाता है अनन्त की तरफ,
और भीतर का सुख ये कहता है
कि वो मेरा घर यहीं है यहीं है ।
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