POEMS BY PAVAN KUMAR SHARMA 'PAAVAN'(MAN KI SFURNA)

 चूका हुआ समय 
   
कई अलसाई सी शामों को बैठकर मैं ।
समय चूक जाने का गिला करता हूँ ॥
लेकिन समय कभी ख़त्म नहीं होता प्रभु ।
क्यूँकि उसे तुमने अपने हाथों से संवारा है ।।
सृष्टि के हृदयकुंज में बैठे तुम, बीजो को उगाते हो ।
कलियों को फूल, फूलों को फल बनाते हो ॥
और मैं अलसाया सा बिस्तर पे पड़ा रहता हूँ ।
ये सोचता हूँ कि सब, बिना मेरे, रूक गया होगा ॥
मगर हर सुबह उठ कर जब मैं देखता हूँ ।
तो उपवन फूल और फलों से भरा होता है ॥

पतंग और तमन्नाएँ   
  
यूँ तो हवा का रुख समझती है पतंगे ।
फिर भी तो हवा के हालात से लड़ती है पतंगे ॥
चढ़ती है, उतरती है, कटती है पतंगे ।
उम्मीद के धागे से ही बढ़ती है पतंगे ॥
गिरती है, संभलती हैं, ठुमकती हैं पतंगे ।
बेख़ौफ़ तमन्नाओं सी मचलती है पतंगे ॥

दुनियादारी  

इतनी दुनियादारी रख ।
जाने की तैयारी रख ।।
मिल जायेगी मंजिल तुझको ।
कोशिश अपनी जारी रख ।।
वक्त पड़े जब काम आ सकें ।
उन लोगों से यारी रख ।।
काँटे चुभ छलनी कर देंगे ।
घर में एक फुलवारी रख ॥
कभी किसी से कुछ न लेना ।
इतनी तो खुद्दारी रख ।।
मन चाहे रब से जुड़ जाये ।
तन अपना संसारी रख ॥