POEMS BY PAVAN KUMAR 'PAAVAN' (MAN KI SFURNA)
दोस्त, मेरा हमसफ़र ।
क्या इस तूफानी रात में तुम मेरे साथ हो ए
दोस्त मेरे ।
ये मेरी प्रेम से भरी मुलाकात है तुम्हारे
साथ ।
जिस पर आकाश भी निराशा से रोता है ।
आज की रात मैं जी भर के सोऊँगा ।
और जब भी मैं दोबारा बाहर को देखूँगा ।
अंधकार ही नज़र आएगा मुझे तुम्हारे बिना ।
मुझे अन्यथा कुछ भी नज़र नहीं आता,
तुम्हारा सुझाया रास्ता भी तुम बिना नहीं
भाता ।
इस नीली सी नदी का कहाँ है छोर ?
और उस पीले से जंगल का नहीं कोई ओर ।
और उन दोनों ही से तुम चीर कर निकलते हो ;
केवल मेरे लिये ए दोस्त, सिर्फ मेरे लिये ।
जब दिन ढल जाता है ।
अगर दिन ढल जाता है ।
अगर चिड़ियाँ नहीं चहकती हैं ।
हवा चलते चलते थक जाती है ।
तो मुझे अंधेरों के घने पर्दों से ढक देना ।
जैसे तुमने धरती को नींद की चादर से ढका है
।
और जैसे हर शाम कमल की पंखुड़ियाँ सिमटती हैं ।
उस राही , जिसका पिटारा सफर के अंत से पहले ही खाली है,
जिसके कपड़े धूल से पटे और तार तार हैं ।
जिसकी हिम्मत पस्त हो चुकी है और वह,
गरीबी के अभिषाप को भी नहीं मिटा पाता ।
वो अपने जीवन को नये फूल सा क्या निखारेगा ?
निंद्रा और थकान से भरी रात ।
थकान भरी इस रात में,
मुझे पूर्ण विश्रान्ति की नींद में सोना है
।
अपना विश्वास तुझ पर जमा कर,
द्वंद्व में फँसी मेरी अन्तर आत्मा को तेरी
पूजा हेतु पूरी तरह समर्पित कर,
यह समझना है कि तुमने दिन की थकी आँखों को
विश्रान्ति देने को रात बनाई है ।
ताकि वह स्वस्थ हो और जागृत होने पर नई उमंग
से दुनिया को देख सके ।
कि कहीं इसमें कोई भी छेद न रह जाये रोशनी
के लिए ।
और जितनी सावधानी मैं बरत रहा हूँ मेरा
अस्तित्व अस्त हो रहा है ।
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