POEMS BY PAVAN KUMAR 'PAAVAN'(MAN KI SFURNA)
अनंत शांति की खोज
मैं समुद्र की अनन्त गहराई
में उतरना चाहता हूँ ।
ताकि मैं वहां से एक
सर्वगुण संपन्न मोती निकाल सकूँ ॥
तब मेरे इस अंतहीन से सफर
का अंत होगा ।
और मेरे जिज्ञासु इस मन की
पिपासा शांत होगी ॥
पहले लहरों से खेलना मेरा
पसंदीदा व्यसन था ।
अब मैं अथाह से ज्ञान की
इंतिहां चाहता हूँ ॥
मैं अस्ल में जीवन के बिना
की जिंदगी चाहता हूँ ।
और मैं मृत्यु विहीन ही मौत
चाहता हूँ ॥
मैं वहां जाना चाहता हूँ
जहाँ बिना किसी पैंदे का श्रवण ग्रह है ।
और जहाँ बिना किसी भी स्वर
में बंधा संगीत है ॥
अपने जीवन की इस चाह को
मुझे स्वीकारना होगा ।
अपने श्रवण तंत्र को शाश्वत
संगीत के स्वरों पर साधना होगा ॥
क्यूंकि जब इस शाश्वत संगीत
का श्वर हीन साज़ बजेगा ।
तभी मेरा प्राण उस अनन्त की
शान्ति में खो जाऐगा ॥
अश्रुमोतियों की माला
माँ मैं मेरे दुःखों को
अश्रुमोतियों में ढालकर माला बना कर ;
आपके गले और उर पर उसे
सुशोभित करना चाहता हूँ ॥
आकाश के तारों ने आपके
पावों के लिए रोशनी के नुपुर बनाये होंगे ;
लेकिन मैं मेरे मोतियों की
इस माला से आपके उर को
सजाऊँगा ॥
धन, संपदा, ख्याति आदि सब आप की कृपा से मिलते होंगे ;
उनका मिलना या ना मिलना
बिना तुम्हारी कृपा के संभव ही नहीं ।
मगर मेरे गम और मेरे अश्रु
सिर्फ मेरे हैं और मैं उन्हीं को ;
मोती बना, माला में पिरोकर आपके उर पर प्रेम से सजाऊँगा ।
मेरी इस समर्पण की भावना को
समझ कर हे मेरी माँ ;
आप अवश्य ही प्रसन्न होंगी
ऐसा विश्वास मुझे होता है ॥
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