POEMS BY PAVAN KUMAR 'PAAVAN'(MAN KI SFURNA)
अंतहीन समय
तुम्हारे द्वारा दिया ये
समय प्रभु अंतहीन है ।
इस अंतहीन समय की घड़ियों को
कौन गिन पाता है ॥
दिन और रात, आकर चले भी जाते हैं ।
और युग भी आकर फूलों की तरह
झड़ जाते हैं ।।
लेकिन यह समय, प्रभु ये रुकना नहीं जानता ।
सिर्फ चलता रहता है निरंतर, बस चलता रहता है ॥
समय शताब्दी दर शताब्दी , एक के बाद एक ।
जंगली फूलों सा सब को
सवांरता हूँ चुन चुनकर ।।
इस समय का कोई भी पल बर्बाद
नहीं होता है ।
और हम सदैव समय चूक जाने का
गिला करते हैं ।।
हर एक मौके पे सदा गरीबों
से, देर कर पहुँचते हैं ।
और समय नहीं मिला, कह कर भाग्य को कोसते हैं ॥
जबकि आप हर चाहने वाले को, बराबर समय देते हो ।
और आप की वेदी खाली भी नहीं
होती देते देते ॥
मैं हर रोज़ भागता रहता हूँ
आप के दर्शनों को पाने को ।
जबकि आप का द्वार प्रभु सदा
से ही खुला रहता है ॥
और मुझे लगता है कि समय तो
अभी बाकी है ।
अंत सिर्फ मेरा है प्रभु
समय तो सदा अनंत है ॥
तुम तो बैठे हुए, मुस्कुराते भर हो
मैंने लोगो से शेखी बघारी, कि मैं जानता हूँ तुम्हें ।
और तुम तो बैठे हुए, सिर्फ मुस्कुराते रहे ॥
मेरी रचनाओं में उन्हें
तुम्हारी छवि नज़र आती है ।
और वे पूछते हैं मुझे, कि कौन हो तुम जो वहां बैठे हो ॥
मुझे खुद को मालूम नहीं, क्या जवाब दूँ उनको ।
मैं तो कहता हूँ कि मालूम
नहीं है मुझको ॥
वे मुझे दोषी बता, कोसते हुए चले जाते है ।
और तुम तो बैठे हुए, सिर्फ मुस्कुराते रहते हो ॥
मेरे गीतों में मैं
तुम्हारा ही बखान करता हूँ ।
मेरे अंतस में छुपा राज़
निकल के आता है ॥
वे मुझे उस राज़ का मतलब भी
पूछते रहते हैं ।
मैं यह कहता हूँ कि मतलब
मुझे पता ही नहीं ॥
वे मुझे दोषी बता, इल्ज़ाम धरते रहते हैं ।
और तुम तो बैठे हुए, सिर्फ मुस्कुराते
हो ।
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