ग़ज़ल- पंथ कहते ख़त्म कर दो मन की जो भी कामना है, मैं कहूँ अपवाद इस में, लोकहित की भावना है। ज्ञान का उद्देश्य है बस सूक्ष्म में तो मात्र इतना, क्या सही है, क्या ग़लत है, बस यही तो जानना है। क्या सही है क्या ग़लत है जानना आसान कितना, सर्वहित की भावना ही सत्य की प्रस्तावना है। ज़िन्दगी में वह उचित है जो सभी के हित में हो बस, हाँ इसी इक भाव को ही आप-हम को थामना है। कामना से जग बना है, कामना से चल रहा ये, सब फलें-फूलें निरंतर, मेरे मन की कामना है। रम रहा कण-कण में है भगवान यदि कहते हो तुम तो, सबको हो अवसर बराबर क्या ग़लत ये मानना है ? दूसरों की कीमतों पे लाभ ख़ुद का चाहते वो,