ग़ज़ल दोस्तो, मिर्ज़ा ग़ालिब साहिब के 227 वें जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ. ईश्वर उनकी आत्मा को बुलंद मक़ाम अता करे. बतौर ख़राज-ए-'अक़ीदत पेश-ए-ख़िदमत है उनकी ज़मीन पर कही गयी मेरी ये ग़ज़ल जिसे मैंने बस अभी कभी लिखा है. ग़ालिब साहब की मशहूर ग़ज़ल भी पोस्ट में दी गई है. अर्ज़ किया है- वो तो रूठी है, घर नहीं आती उसकी कोई ख़बर नहीं आती //1 क्या यही है विकास गाँवों का बिजली क्यों रात भर नहीं आती //2 जाना पड़ता है उसके मसदर तक चल के ख़ुद ही डगर नहीं आती //3 उसकी फ़ितरत है बेवफ़ाई की वादा करती है, पर नहीं आती //4 वक़्त तो हो चुका है सोने का नींद हमको मगर नहीं आती //5 वो पहाड़न चली गयी शायद कुछ दिनों से इधर नहीं आती //6 '' रस्म-ए-वफ़ा बदलने की कोई सूरत नज़र नहीं आती //7 وہ تو روٹھی ہے، گھر نہیں آتی اسکی کوئی خبر نہیں آتی //1 کیا یہی ہے وکاس گاؤوں کا بجلی کیوں رات بھر نہیں آتی //2 جانا پڑتا ہے اسکے مسدر تک چل کے خود ہی ڈگر نہیں آتی //3 اسکی فطرت ہے بیوفائی کی وعدہ کرتی ہے، پر نہیں آتی //4 وقت تو ہو چکا ہے سونے کا نیند ہم کو مگر نہیں آتی //5 وہ پہاڑن چلی گئی شاید کچھ دنوں سے ادھر نہیں آتی //6 'راز' رسم وفا بدلنے کی کوئی صورت نظر نہیں آتی //7 #राज़_नवादवी®