ग़ज़ल- जब मिलें हम मुस्कुराना चाहिए, दर्दोग़म सब भूल जाना चाहिए। शायरी का जन्म होता आह से, चाह से इसको सजाना चाहिए। जानने को जग है, इस पर भी ग़ज़ब, खुद को जानें, तो ज़माना चाहिए। ज़िंदगी में ख़ुद-ब-ख़ुद बढ़ते हैं ग़म, कर के कोशिश ग़म भुलाना चाहिए। देख कर कोशिश तुम्हारे काम की, हर कली को मुस्कुराना चाहिए। टूट जाते हैं ग़लतफ़हमी से ये, ध्यान से रिश्ते निभाना चाहिए। हम भी तो हैं नागरिक इस देश के, हम को भी अच्छा ज़माना चाहिए।