ग़ज़ल- तब वो थे दीवाने कितने? अब देते हैं ताने कितने? सच की ख़ातिर, सोचो अब तक, जान दिए फ़र्जाने कितने? फ़र्जाना=बुद्धिमान दावा करते मुल्ला-पंडित, सच्चाई पहचाने कितने? जो अंदर भी, उसे ढूँढते, बाहर-बाहर जाने कितने? अब तक ढूँढे से मिल पाए, मेरे-से दीवाने कितने? भक्त बने फिरते जो, इनमें, बात इष्ट की माने कितने? कुछ के भाषण से ही सोचो, जान गँवाते जाने कितने?