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A personal blog by Pavan Kumar "Paavan"
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7:43 PM
Article Published by : PAVAN KUMAR SHARMA,' PAAVAN &MAAHIR
प्रस्तुत है एक ग़ज़ल- मुझे इस बात का शिकवा बहुत है, हुआ मरना भी अब महँगा बहुत है। मिला जो दर्द मुझको इश्क़ में वो, कसकता है, मगर अच्छा बहुत है। ज़रूरत जब पड़ी, वो व्यस्त थे कुछ, मुझे इस बात का सदमा बहुत है। ख़यालों में वो इक चेहरा बसा है, जिसे देखा नहीं, सोचा बहुत है। वो मेरा था, रहेगा बस मेरा ही, किया जिसने हमें रुसवा बहुत है। उसे नफ़रत हुई अब आईने से, दिखा जब भी, लगा झटका बहुत है।
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