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A personal blog by Pavan Kumar "Paavan"
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8:17 PM
Article Published by : PAVAN KUMAR SHARMA,' PAAVAN &MAAHIR
अष्टावक्र संहिता; अध्याय XVIII:शान्ति क्व आत्मन:दर्शनम् तस्य यस्य दृष्टम् अवलम्बते। धीरा:तम् तम् न पश्यन्ति पश्यन्ति आत्मानम् अव्ययम्॥४०॥ उसको आत्मदर्शन सम्भव कहाँ जो दृश्य पर आश्रित सदा धीर पुरुष दृश्य को न देख कर केवल अव्यय आत्म को ही देखता॥४०॥ क्व निरोधो विमूढस्य य:निर्बन्धम् करोति वै। स्वारामस्य धीरस्य सर्वदा असौ एव अकृत्रिम:॥४१॥ अज्ञानी सतत् प्रयत्न करते भी मन को एकाग्र कर पाता कहाँ? पर अपने में रमे ज्ञानी का मन बिना किसी चेष्टा के स्वयं ही रमा रहता आत्म में॥४१॥ भावस्य भावक:कश्चित् न किंचित् भावक:अपर: उभय अभाव:कश्चित् एवम् एव निराकुल:॥४२॥ कोई कहता संसार सत्य है दूजे कौ भासता असत्य और मिथ्या। पर नि:संशयी जानकर दोनों को मिथ्या शान्त-चित्त हो रहता॥४२॥
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