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A personal blog by Pavan Kumar "Paavan"
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7:31 PM
Article Published by : PAVAN KUMAR SHARMA,' PAAVAN &MAAHIR
अष्टावक्र संहिता; अध्याय XVIII:शान्ति निर्ध्यातुं चेष्टितुम् वापि यत् चित्तम् न प्रवर्तते। निर्निमित्तम् इदम् किन्तु नि:ध्यायति विचेष्टते ॥३१॥ समाधि अथवा कर्म में निज चेष्टा से प्रवृत्त होता नहीं मन में न रख कोई निमित्त समाधि और कर्म में सदैव रहता निरत॥३१॥ तत्त्वम् यथार्थम् आकर्ण्य मन्द:प्राप्नोति मूढताम्। अथवा याति संकोचम् अमूढ:कोऽपि मूढवत्॥३२॥ तत्त्व के यथार्थ को सुनकर मंद-बुद्धि आचरण करता मूढ सा। अन्य बुध:तत्त्व को सुनकर संकोचवश मूढ सा है दीखता॥३२॥ एकाग्रता निरोधो वा मूढ़ा:अभ्यस्यते भृशम् । धीरा:कृत्यम् न पश्यन्ति सुप्तवत् स्वपदे स्थिता:॥३३॥ अज्ञानी लगे रहते मन की एकाग्रता और ध्यान के अभ्यास में पर ज्ञानी कुछ भी न करता दीखता सुप्त सा दीखते भी आत्म में स्थित रहता सदा॥३३॥
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