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A personal blog by Pavan Kumar "Paavan"
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8:11 PM
Article Published by : PAVAN KUMAR SHARMA,' PAAVAN &MAAHIR
अष्टावक्र संहिता; अध्याय XVIII:शान्ति मूढ:न आप्नोति तत् ब्रह्म यत:भवितुम् इच्छति। अनिच्छन् अपि धीर:हि परब्रह्मस्वरूप भाक् ॥३७॥ स्वयं ब्रह्म होने की इच्छा वाला मूढ़ नहीं प्राप्त होता ब्रह्मन् को। धीर पुरुष अनइच्छित ही हो जाता है परब्रह्ममय॥३७॥ निराधार:ग्रहव्यग्रा: मूढ़ा:संसारपोषका: एतस्य अनर्थमूलस्य मूलच्छेद:कृत:बुधै:॥३८॥ आधार-विहीन ब्रह्म को पाने को रहते व्यग्र परन्तु ये मूढ़ केवल साधते संसार को। इस सब अनर्थ के मूल संसार को जानकर इसके मूल को ही काटते हैं चतुर जन॥३८॥ न शान्तिम् लभते मूढ: यत:शमितुम् इच्छति। धीर:तत्वम् विनिश्चित्य सर्वदा शान्तमानस:॥३९॥ शान्ति चाहने वाला मूरख नहीं शान्त हो पाता जीवन भर। तत्त्व जानकर के ज्ञानी सदा शान्त-मन हो रहता॥३९॥
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