अष्टावक्र संहिता अध्याय XX : जीवन - मुक्ति क्व विक्षेप: क्व च एकाग्रा क्व निर्बोध: क्व मूढता । क्व हर्ष : क्व विषादो वा सर्वदा निष्क्रियस्य मे ॥९॥ भटकाव कहाँ, एकाग्रता कहाँ ज्ञान परिपूर्णता कहाँ, मूढ़ता कहाँ । हर्ष कहाँ , विषाद कहाँ मुझ सर्वदा निष्क्रिय के लिए ॥९॥ क्व च एष व्यवहारो वा क्व च सा परमार्थता । क्व सुखं क्व च वा दु:खं निर्विमर्शस्य मे सदा ॥१०॥ यह व्यवहार किसके लिए और कहाँ वह परमार्थ भी । सुख कहाँ और दु:ख भी कहाँ मुझ सदा विमर्शहीन के लिए ॥१०॥ Paavan Teerth