Geeta अष्टावक्र संहिता जीवन - मुक्ति क्व भूतानि क्व देहो वा क्वेन्द्रियाणि क्व वा मन: । क्व शून्यं क्व च नैराश्यं मत्स्वरूपे निरंजने ॥१॥ स्रष्टि-तत्व कहाँ, देह कहाँ इन्द्रियाँ कहाँ अथवा मन कहाँ । शून्य कहाँ और नैराश्य कहाँ उसको जो निरंजन- स्वरूप है ॥१॥ क्व शास्त्रं क्व आत्मविज्ञानम् क्व वा निर्विषयं मन : । क्व तृप्ति : क्व वितृष्णत्वम् गतद्वन्द्वस्य में सदा ॥२॥ शास्त्र कहाँ , आत्मज्ञान कहाँ विषयों से अनासक्त मन कहाँ तृप्ति कहाँ अथवा वितृष्णा कहाँ जो द्वैत से ऊपर उठा ॥२॥ Paavan Teerth