ग़ज़ल वादों पे लुट रहे हैं,दुनिया-जहान वाले, सूरज को खा गए वो,ऊँचे मकान वाले। झगड़े हैं तब सुलझते,जब बात हो सके कुछ, मिलने न देंगे तुमको ये दरम्यान वाले। दरम्यान वाले=बीच के लोग क़द की कहाँ ज़रूरत,व्यापार में रही कुछ, फ्लैटों को बेचते हैं,छोटी दुकान वाले। सच की ज़ुबां तो लगती तीखी,मगर समझिए, दिल के बहुत हैं काले,शीरीं ज़ुबान वाले। शीरीं ज़ुबान वाले=केवल मीठा मीठा बोलने वाले सच को कहा है सच जब,भड़के हैं पंथ सारे, निकले घरों से सजकर,तीर-ओ-कमान वाले। 'Maahir'