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A personal blog by Pavan Kumar "Paavan"
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1:03 PM
Article Published by : PAVAN KUMAR SHARMA,' PAAVAN &MAAHIR
ये मेला पांच वर्षों का (ग़ज़ल ) दरीचे बन्द कर दो सब , अंधेरे आ रहे यारो । ये मेला पांच वर्षों का , लुटेरे आ रहे यारो ।। कभी कंबल , कभी साड़ी , कभी मदिरा तुम्हें देते , तुम्हें राजा से भिखारी , बनाने आ रहे यारो । ये मेला ------------------------------।। लूटते लाज नारी की, देखो हैवानियत इनकी! बेटी बचाओ आंदोलन, आगे ला रहे यारो। ये मेला ----------------------------- ।। ये करते वोट का सौदा, जाति-भाषा के बल पर! बहन-भांजी के चीर खींचें , अनुष्ठान कर रहे यारो । ये मेला ----------------------------।। ये सन्तों की सुघर धरती, कालिमा पोतते इस पर! ऋचाऐं,आयतें,श्लोक, खंडित हो रहे यारो। ये मेला ----------------------------।। फ़िदा है लक्ष्मी पर सब, नहीं कल का ठिकाना है! सभी इंसान ख़ाली हाथ, जहां से जा रहे यारो । ये मेला -----------------------------।। यह सत्ता के गलियारों तक, राम को फ़िर से ले आए! भूलकर आज भारत को, नफ़रत फैला रहे यारो। ये मेला -----------------------------।। ये सोए पांच वर्षों तक, जनता ने जाग दिन काटे! जुगाली करके दोबारा, विचरने आ रहे यारो । ये मेला ---------------------------- ।। ग़ज़ल सलमा की सियासत के, रंग में,रंग नहीं सकती! सब की गाढ़ी कमाई से, यह पेंशन पा रहे यारो। ये मेला ---------------------------।।
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