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A personal blog by Pavan Kumar "Paavan"
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12:55 PM
Article Published by : PAVAN KUMAR SHARMA,' PAAVAN &MAAHIR
प्रस्तुत है एक ग़ज़ल- जब उसके रास्ते में हम भवन अपने बनाते हैं, नदी के एक दिन दोनों किनारे बोल जाते हैं। बुरा जब वक़्त आए तो, जो करना सोच के करना, कि ऐसे में कई अपने सहारे, बोल जाते हैं। बुढ़ापे में, ज़रूरत जब अधिक होती है सेवा की, ज़ियादा जो बना करते दुलारे, बोल जाते हैं। समझ वाले समझ जाते ज़रा सा ग़ौर करते ही, ज़ुबाँ गर चुप रहा करती,नज़ारे बोल जाते हैं। किसी भी काम में विश्वास जब भी डगमगाता है, सभी तब बाल-ओ-पर यारो हमारे बोल जाते हैं। बाल-ओ-पर = यहाँ भावार्थ है सामर्थ्य बहस में जाति-पंथों के किसी मुद्दे पे जब आते, बहुत जो ख़ास बनते हैं तुम्हारे,बोल जाते हैं।
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