'मधुशाला'
A Maha Kavya By Harivansh Rai Bachchan,the Contemporary Version.

मदिरालय  जाने को अब , जब चलता है पीनेवाला,
कौन रास्ता पकड़े वह , असमंजस  में भोला भला !
सभी रास्ते बंद पड़े हैं ,  पर यह सब उसे बताते  हैं,
'मोदीजी'  से  राह पूछ  तू , मिल जाएगी  मधुशाला!
'कोरोना'   से  डरा  हुआ है , आज हरेक पीने वाला,
कैसे  घर से  निकलूंगा  में , सोच  रहा  है मतवाला !
मदिरालय  सब बंद पड़े अब,मैं उसको बतलाता हूँ,
सिसकरहे हैं ख़ाली प्याले,बिलख रही है मधुशाला !
और उसे जब बतलाता  हूँ , उसकी वो साकी बाला,
कोरोना बन कर आयी है ,प्याला ले मरघट वाला! 
कभी जहाँ ढलती थी निःदिन मादक प्यालों में हाला,
विधवा हो गुमसुम बैठी है ,उसकी  प्यारी मधुशाला!
बंद पड़े सब मंदिर मस्जिद,गुरूद्वारे सब खाली हैं,
'कोरोना' ने डाल दिया है, उन पर भी  मोटा ताला!
मुल्ला,पंडित और पादरी,अब वह सब खामोश हुए,
करते रहते थे जो निस दिन,जापताप सिमरन,माला!
चाहे जितना ऊँचा  हो वह, पादरी ,पंडित ,मौलाना,
मज़बूरी  में  टेर  रहे  हैं राग, वहीकोरोना’ वाला!
एक  बार  जिसका  पड़ जाए , ’कोरोना’  से पाला,
कितने  भी  हों  रिश्ते -नाते , कोई  नहीं  छूने वाला!
मित्र  पराये हो जाएं सब , दूर ही रह कर बात करें,
घर में रह कर दूर रहेंगे ,घरवाली ,साली- साला!
मेरे यह सब बतलाने  पर , बिदक गया  पीने  वाला,
 बिगड़  गया  बोला साले ,मैं  तेरी नहीं हूँ सुनने वाला! 
                   
 (02)

घर बैठा हूँ इतने दिन से , तुझे समझ क्यों आएगा ,
तूं  तो है जाहिद का बेटा, कभी मय पीने वाला!
लेकिन तू इतना तो बता, हम जैसों का क्या होगा?
रोज़ रोज़ के पीने वाले,और बंद रहे गर मधुशाला!
   मधुशाला   कैसी होती  है, तुझ को मैं समझाता हूँ ,  
क्या होती साकी,मय ओ क्या होता मय का प्याला!
नाम तो तूने सुना ही होगा'बच्चन' वो फिल्मों वाला,
उसके बाप ने बिना पिए ,रच दी थी इक मधुशाला!
लेकिन था वह बड़ा सयाना, रब की मय पीने वाला,
ख़ानदान कायस्थ था उसका, पुश्तों से पीने वाला!
रग रग में थी मदिरा उसके, हर पुरखा मै पीता था,
बचपन से देखी मै उसने , परखा था मै पीने वाला!
मधुशाला कब देखी उसने ये तो मुझको पता नहीं,
लेकिन उसको पताथा सब,क्या होती है मधुशाला!
जो लिखा है उसने इस पर,मैं तुझ को बतलाता हूँ,
पूरी मुझको याद नहीं है, पर इतना तुझे बताता हूँ!
             
अपने होटों से जिसने, हाय पिया मय का प्याला,
खुश हो कर जिसने बोला,हो जाये अब तो हाला!
हाथ पकड़ कर साकी का जिसने पास नहीं खींचा,
हुआ व्यर्थ जीना उसका, उसे डांटेगा ऊपर वाला!”

“सब मिट जाए बने रहेंगे, सुन्दर साकी, मय का प्याला. 
गन्ने , फलों का रस मिले , मिल जाये फिर भी हाला !
  चहल पहल-औ भीड़ भाड़ की जगहें हो सुनसान मगर,
   बंद  नहीं  हो  सकते  मरघट, बंद   होंगी  मधुशाला !”

(03)

बच्चन जी  तो रहे नहीं  पर कल, कहा किसी मंत्री जी ने,
बंद हो गए मदिरालय तो आये, 'कर’ कैसे मदिरा वाला!
कैसे चलेंगी सरकारें , सब  खर्चे अमलों   झमेलों के,
बिना ’ करों’ के कैसे चले सब , सरकारी गड़बड़ झाला!
यह  बतलाकर निकल पड़ा,वो बाय बाय कर के मुझको,
मास्क  लगा कर अपने मुंह पर , मय पीने को  मतवाला!
‘कोरोना’ से बचने खातिर वो,फिर भी था हुसियार मगर,
हाथों  में थे दस्ताने ,रखे जेब में बोतल सेनेटाइज़र वाला!
तैयारी  कर के निकला था ,वो मन में यह  विस्वास  लिए,
मिल  जाएगी मधुशाला ,साकी बाला मय का प्याला!
जाने  को  तैयार उधर  वोह , मयकश  हो कर मतवाला,
उसको  सिर्फ  नज़रआती है ,मय , साकी मधुशाला!
पता मगर मुझको  था  कि वह , जा   सकेगा दूर बहुत,
बाहर  निकला , रोक  ही लेगा ,नुक्कड़ पर पुलिसवाला!
बोला  मैं भाई  मेरे ,करता   मैंतेरी हिम्मत को सलाम,
लेकिन  क्या मालूम  तुझे,यह समय नहीं बच्चन'वाला!
पहले सब  मिल सकता था ,साकी  , मय  मधुशाला,
लेकिन अब सब बंद पड़ा है , ताला है 'ब्लॉकेड' वाला!
‘बच्चन ‘ जी को पढ़ा  है मैंने , पढ़ी  है उनकी मधुशाला,
जिसमें  उन ने  लिखा खूब है , इक मक़्ता ये नीचे वाला!
"पथिक  बना  मैं  घूम  रहा  हूँ , सभी जगह  मिलती हाला,
सभी जगह मिलती प्रिय साकी,सभी जगह मिलता प्याला!
मुझे  ठहरने   का  हेमित्रों  , कष्ट  नहीं  कुछ  भी   होता ,
मिले मंदिर,मिले मस्जिद ,मिल  जाती है ,मधुशाला!"

(04)

लेकिन  भैया  'बच्चन'  जी का , समय वो था अच्छा वाला,
नहीं   बंद  थी  मधु शालाएं , साकी  और  मय  का प्याला!
अभी तो जो जन सेवक हैं , ऊने डाल  दिया सब पर ताला,
क्या   तूने  नहीं  हाल  सुना  वो ,'तब्लीगी' मरकज़  वाला !
      यह सुन कर वा  रुक गया  भइया ,थोड़ी  देर को  जाने  से,      
सोचा मैं सफल हो गया,रंज उसे था,सिर्फ मिरे समझने से!
समझाने से चिढ़ गया मुझ से ,तू 'बच्चन' की क्या बात करे,
याद नहीं तूं फेल हुआ था , और  परचा  था  कविता वाला !
'बच्चन'जी को समझ सके जो,ये उन के बस की बात नहीं,
जाहिल  रहे हैं  बचपन से ही ,रुख  रहा सदा जाहिद वाला!
मेरा हाल बताता  तुझ को सुन ,कवि'बच्चन' के ही छंदों से,
मैकश की   हालत को समझ तू,आज चंद उन्ही के बंधों से!

"किसी  तरफ  मैं  आँखें  फेरूं , दिखलाई  देती   है  हाला,
किसी और मैं फेरूं आँखें, दिखलाई देता मय का प्याला !
किसी  तरफ मैं देखूं मुझको,दिखती सिर्फ है साकी बाला,
 किसी और फेरूं  मैं  आँखें , दिखती  मुझे  तो  मधुशाला!"

अच्छा  हुआ  जो छेड़ा तुमने ,किस्सा 'तब्लीगी  मरकज़ वाला,
'बच्चन' जी ने कहा  है उस पर , छन्द  एक  यह हिम्मतवाला!

"मुसलमान   हिन्दू  हैं  दो , एक  मगर  उनका  प्याला ,
एक मगर  उनका मदिरालय , एक  मगर उनकी  हाला !
दोनों रहते  एक जब तक , मंदिर-मस्जिद में  है  रहते ,
बैर  बढ़ाते  मंदिर-मस्जिद ,पर  मेल  कराती मधुशाला !"

(5)

मेरा  कहा  मान  कर  मुझको  , जाने  दे  तू  मधुशाला,
मेरा दोस्त भले हो तू,पर फिर न्याय करेगा ऊपरवाला!
यह सुनकर मैं पस्त हो गया ,मारेगा मुझको यह साला,
भाभी जी को बतलाता  हूँ , फिर क्या करेगा मतवाला ?
भाभी को याद किया,वह तुरत गयी बन कर ज्वाला,
देख कर हमको समझ गयी,है राग वही मय पीने वाला!
कल ही तो बस ख़त्म हुई  है ,इनकी वह प्रिय-तम हाला,
इनको है क्या हुआ 'पवन' जी ,रोज रोज मय का प्याला!
लाकर कोई कहाँ से देगा,खुलती कहाँ है अब मधुशाला,
लाकर  कहीं  से दूंगा इनको ,कहता है कोई ठेके-वाला!
लेकिन इनको सब्र कहाँ , दिन भर जपते हैं दारू माला,
आप भी इनके दोस्त हो  भैया , क्या है ये गड़बड़ झाला!
आप नहीं  मय पीने-वाले , अब आप कहाँ से टपक पड़े,
कोई यहाँ नहीं आता अब, मित्र था जो था मै पीने वाला!
भाई साहेब रोको इनको,अब वक़्त नहीं है अच्छा वाला,
'कोरोना'का झंझट हैऔ फिर संकट है ब्लॉकेडवाला!
बाहर गए तो धर लेगा ,वह जो पहरे पर है पुलिस वाला,
कौन छुड़ा कर लाएगा फिर,कोई नहीं घर हिम्मतवाला!
पड़ा मुसीबत में  मैं भी , और दोस्त मेरा वह पीने वाला.
लेकिन मुझको ताक रहा वह ,बनकर अब भोला भाला!
बोला पत्नी से वह, तू समझ रही है जिसको पीनेवाला,
यही कह रहा था मुझसे , मैं पिल वाता हूँ तुझको हाला!
क्या बतलाऊँ भैया तुमको , पड़ गया मुझ पर तो पाला,
दोस्त जो मेरा बनता  था उसने,रोल किया दुश्मनवाला!
फ्रीज़  हो  गया  मैं  तो  भैया  ,सील  हो गया  मुख  मेरा,

(6)

लेने  के  देने  पड़ गए , क्या  मुंह  होगा  मेरा अब काला!
पता नहीं क्यों पड़ा अक्ल पर,मेरी भी था यह मोटा ताला,
उस दोस्त से मिलने क्यों आया,जो था मेरा दुश्मन साला!
लेकिन अब तो फेंक चुका था,वो पासा मुझे फंसाने वाला,
मन ही मन मैं  फेर था ,पवन सुत  हनुमान जी की माला!
भाभीजी ने नज़र उठा कर देखा मुझको और कुछ तौला,
पड़ी हवाइयां मेरे मुंह पर,रंग उड़ा देख करउसकोबोला!
क्यों व्यर्थ दोष इनको देते , क्या नहीं जानती हूँ मैं तुमको,
झूठे हो तुम,फंसा के इनको,क्यों करते हो गड़बड़झाला!
मैं अब जा कर कुछ होशमें आया,भाभी को नमन किया,
निकल  वहां से घर आया ,पथ पकड़ पतली गली वाला!
बच्चन जी ने सही लिखा है,मगर कब समझाहै पीनेवाला,
उलटी पकड़ के पढता है वह,उनकी सीधीसी मधुशाला!

"बूँद  बूँद  के  हेतु  कभी , तुझ  को तरसाएगी  यह हाला,
कभी  हाथ  से  छिन  जाएगा  , तेरा  यह  मादक प्याला!
पीने  वाले  साकी  की , मीठी  बातों  में  तुम मत  आना,
मेरे    गुण  यूं ही  गाती थी , एक दिवस यह मधु शाला!"

इतना साफ़ तो कह डाला ,अब कहेऔर क्या कहनेवाला,
नहीं  मानता  बात  किसी  की  ,बस  जिद्दी  है  पीने वाला!
मैं भी यारों अड़ा  हुआ  हूँ ,अपनी  जिद पर ख़ड़ा हुआ हूँ,
नहीं मिली मय मुझे भी मित्रों,आठ दिवस से पड़ा हुआ हूँ!
कल आसाम  के मुख मंत्री  ने , बात  मेरी सुन ली  भइया,
खोल   दिए  उसने  मदिरालय  मिलने  लगी  वहां  हाला !
      
(7)

 लेकिन  उस  से काम होगा ,कौन  वहां तक जा पायेगा,
मदिरा को लेकर ,दूर से इतनी,कौन यहाँ तक ला पायेगा!
इसीलिए बस तब तक भइये , जारी  रहेगी यह  मधुशाला,
यारों आज   से  बढ़ा  दिया है , पहरा वह ब्लॉकेड वाला,
और  मैं   बैठ यह  सोच  रहा हूँ ,कैसे जियेगा पीने वाला!
मधुशाला  वह  नहीं  है प्यारों ,जहाँ मिले मधु का प्याला,
जहाँ  पे जाकर  खुश  हो जाओ , मेरी  तो वह मधुशाला!
वह   हाला  जो  शांत   कर  सके, मेरे  अंतर की  ज्वाला,
मदिरालय  जाने  पर  यारो , मिल    सकेगी वह हाला!
वक़्तवक़्त  पर रंग  बदलती , मायावी  मेरी  मधुशाला,
अलग-अलग  मर्म  समझाती  ,सबको  यह मेरी  हाला!
अपने  वक़्त पर समझ में आयी  , जुदा जुदा मेरी हाला,
अपने वक़्त पे लगा सभी को ,उम्दा वो मय का प्याला!
फिर भी अगर पूछोगे  किसीको ,एक ही उत्तर पाओगे,
अब    रहे वह  पीने वाले , अब   रही वो मधुशाला!
जिसने प्यासा रखा दोस्त को , बनी रहे वह भी  हाला,
जिसके पीछे भाग रहावो ,कायम रहे मय का प्याला!
पीनेवालों के मुंहसे किसीको,कभी निकलती हायनहीं,
दुखी बनाया जिस ने उनको  ,सुखी रहे वह मधुशाला!
बहुत जल्द ही साकी की  , मादकता  घटने  लगती है,
सुबह  नहीं दिखती वैसी ,जैसी दिखी रात में वह बाला!
उस  प्याले से प्यार है सबको ,जो दूर लबों से है प्याला,
उस हाला का चाव है सबको ,जो दूर जुबां से है हाला!
नहीं  ख़ुशी है मिल जाने में,जो है मिलने केअरमानों में,
पा जाता गर हाय , लगती  प्यारी  इतनी  मधुशाला!

(8)

नहीं  मिली कोई बात नहीं , उम्मीद तो जिन्दा रहती है,
इसी सोच में  लिख दी मैंने ,आठ दिवस यह मधुशाला!
लेकिन यारों  मिटी नहीं है,अब तक मेरी वो अभिलाषा,
जिसकी खोज में रहेगी जारी,मेरी यह पावनमधुशाला!
एक  अगर  हो  पीने  वाला ,एक तरह  की  हो  हाला,
कई  तरहं   के पीने वाले , अलग अलग  होती  हाला!
एक  तरह  की  साकी  हो , तो  नहीं  पिए पीने  वाला,
क्योंकि  रोक  देगी  वह  उसे  पीने से मै का  प्याला!
किन्तु  एक  ना पीने वाला , एक  नहीं उसकी हाला,
इसीलिए  तो  कहा  किसी  ने ,शेर  एक नीचे वाला!
शराब  बंद  हो , यह साकी  के बस की  बात नहीं,
तमाम  शहर  है,कोई  दो ,चार ,दस की बात नहीं!
एक  वजह से पीने वाले की ,बात कही थी  मैंने कल,
और  कहा  था ,मधुशाला  मेरी रोज़  रही रंग  बदल!
मेरी  बातें  पढ़ कर  मुझसे  . बोला  दूजा पीने वाला,
मैं  भी  सबको  बतलाता हूँ , कैसे   पीता हूँ मैं हाला!
मैं खुद को धोके पा के पीता हूँ,एक फ़िज़ा सी बना के पीता हूँ!
लोग  पानी  मिला  के  पीते  हैं ,मैं  तो नज़रें  मिला के पीता  हूँ!
तो  जिंदगानी  शराब  हो  जाए,यह  जवानी  शराब  हो   जाए!
सारी दुनिया हो मैकदा  यारब,सारा  पानी शर.आब हो जाए!
कई  बहाने  बन जाते  हैं  अक्लमंद  पीने  वाला,
कई  तरह  समझाते  हैं  बुरी  बहुत होती  हाला!
किसी  एक  मैकश  से ,पूछा   कैसे बनती हाला,
तो  उसने  मुझे  सुनाया , मक्ता  ये  नीचे  वाला!

(9)

आप के  वास्ते  शराब  सही , हम पियें तो शबाब बनती  है!
सौ ग़मों को निचोड़ने के बाद,एक कतरा शराब बनती है!!
अब बतलायें आप की क्या ,ऐसे  बनती है ? हाला,
मगर कहा  है  पहले  मैंने ,अक्लमंद है  पीनेवाला!
चाहे उसे लाख समझाओ  ,नहीं रुकेगा  मै पीने से,
कसमें कितनी वो खा लेगा ,उनसे क्या  होने वाला!
कसम  दिलाई खुद साकी ने  ,मान गया पीने वाला,
बोला  वह साकी से  लेकिन , शेर यही  नीचे वाला!
जख्म  सीने  की  कसम खा लूँगा , साथ  जीने की कसम  खा लूँगा !
आज जी भर के पिला दे साकी ,कल से ना पीने की कसम खा लूँगा!
एक को जब पूछा मैंने,क्यों कदम रहे तेरे हैं डौल,
बोला वह क्या तूने पी है ?और रहा है मुझे टटोल!
उल्टा चोर कोतवाल को डांटे,जैसी ही ये बात हुई,
याद आगयी मुझको भैया,बच्चनजी की मधुशाला!
लिखी भाग्य में जिसके भैय्या ,वो ही पीता है हाला,
लाख करे कोशिश कितनी,नहीं मिलेगी मधुशाला!
किस्मत में खाली खप्पर,खोज रहा मय का प्याला,
ढूंढ रहा है तू मृग नैनी,किस्मत में तेरी मृग छाला!
जो हाला को पूछ रहाहै ,उसे नहीं है मिलती हाला,
जो प्याले की चाह रखे है, नहीं उसे मिलता प्याला!
सिर्फ देखने एक बार मैं , चला  गया था मधुशाला,
जाकर वहांका हाल जो देखा,शेर बना नीचे वाला!
देख कर हाल मैकदे के यारों,शेखजी कब से उदास बैठे हैं!
टेबलों  पर  सजे हैं  पीने वाले ,कुर्सियों पर  गिलास  रखे  हैं!

(10)

आज मिला है मौका मुझको , क्यों पियूं  छक कर हाला!
बार  बार  तो  नहीं   मिलेगी , मित्रों   मुझ  को  मधु  शाला!
  आज आप को बतलाता  हूँ ,कैसी है साकी बाला,
जिसके खातिर मेरा मैकश,रहता सदा मतवाला!
बस एक जाम और सुराही का बोझ सह नसकी,
नाजुक ऐसी ,चंचल बहुत, सुन्दर है साकी बाला!
बड़े बड़े ख़ानदान  मिटे , कोई न रहा रोने वाला,
हो गए सुनसान महल , जहाँ थिरकी ये सुरबाला!
राज्य उलटे,औ भूपों की, भाग्य सुलक्ष्मी सो जाए,
रंग जमाती पर महफ़िल में , मेरी ये साकी बाला!
सुंदरता और  मादकता का संगम  होता है इनमें,
डूब  गया  इस संगम में ,मैकश वह  भोला भला!
हराभरा है वो मदिरालय ,जहाँ थिरकती ये बाला,
बड़े बड़ों को इन दोनों ने ,बना दिया है मतवाला!
इन का साथ खूब देता है ,मय  से  भरा वो प्याला,
मिलकर सब बहका देते हैं , आये जो पीने वाला!
इनमें  कई तो आँखों  से पिला देती मै का प्याला,
और कमरिया लचका के , कर देती है मतवाला!
इनको  देख बहक जाता है , हरेक  मै पीने वाला,
इनकी अदा को देख  के , कहता हर पीने वाला!
शिकन न  डाल  जबीं  पर साकी ,शराब देते हुए,
ये मुस्कुराती हुई चीज़ है साकी,मुस्कुरा के पिला!
नशा  किसी चीज़ की मिक़दार में, नहीं  होता  है,
शराब  कम है तो साकी ,तूं नज़रें मिला के पिला!
‘The long poem Madhushla’to be continued……………….Pavan Kumar Sharma ,’Maahir ‘