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A personal blog by Pavan Kumar "Paavan"
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8:50 PM
Article Published by : PAVAN KUMAR SHARMA,' PAAVAN &MAAHIR
ग़ज़ल - तबीयत फिर, मचलना चाहती है, किसी से वो उलझना चाहती है। मुख़ालिफ़ ताक़तों की साजिशों से, जुबां फिर से फिसलना चाहती है। मुख़ालिफ़=विरोधी अना मेरी जवां होने की ख़ातिर, चुनौती से निखरना चाहती है। अना= स्व, self वजूदों पे दिखे ख़तरे तो जाने, फ़िजा ख़ुुद को बदलना चाहती है। मुसीबत सामने पाई तो समझे, मेरी क़िस्मत सँवरना चाहती है। जो देखीं कोशिशें जीने की तब से, उदासी हाथ मलना चाहती है। सियासी सोच से हुशियार रहना, वो फिर चेहरा बदलना चाहती है। जो देखा जोश बच्चों का तो नई उम्मीद पलना चाहती है।
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