सच बोलने
से डरता हूँ, झूठ कहकर
गुज़र मैं करता हूँ
कुछ
विकासवादी जीव वैज्ञानिक यह मानते हैं कि मनुष्य प्रजाति (Homo sapiens) में झूठ
बोलना स्वभावगत या आनुवांशिक प्रवृत्ति है । यह परिकल्पना मनुष्यों को अपने स्वाभाविक
वर्तन में अक्सर झूठ बोलते सुनकर और देख कर ही निर्धारित की गई है । इस परिकल्पना
को इस बात से भी समर्थन मिलता है की अन्य प्राणियों में भी अपने स्वयं के बचाव के
लिए रूप परिवर्तन कर पर्यावरण से सामंजस्य करने की क्षमता होती है (disguising their presence by camouflage).
कुछ जीव / प्राणी स्वयं की रक्षा उन प्राणियों / जीवों का रूप
बनाकर करते हैं जिनको विषाक्त समझा जाता है या जिनका स्वाद बहुत ही ख़राब माना जाता
है । यह नक़ल कर सकने की प्रवृत्ति भी आनुवांशिक होती है और प्राण रक्षा (Survival Instinct) का बहुत
ही कारगर उपाय (Mimicry for Survival)
है। डार्विन ने कहा है कि सभी प्राण बचाने हेतु करे
जाने वाले यह प्रयास प्राकृतिक चयन ( Natural Selection ) की प्रक्रिया है जिससे
प्राणियों का विकास (Evolution
) हुआ है। इस बात से सहमत होते हुए भी यह कहा जा सकता है कि आडम्बर रचने
की यह प्रवृत्ति जो
जानवरों व अन्य प्राणियों में प्राकृतिक विकास के साथ आई तो मनुष्यों में भी झूठ
और आडम्बर की यह प्रवृत्ति मानवजाति
के विकास के साथ जनित और विकसित हुई । लेकिन यह
बात भी सत्य है कि मानव जाति
में वाणी या भाषा का विकास भी शायद १ लाख सालो की
ही देन है और बहुत प्राचीन या पुरातन और सनातन नहीं है । तो यह एक विवाद का विषय
हो सकता है कि मनुष्यों में झूठ बोलकर अपना बचाव करने की यह क्षमता क्या इतनी कम
अवधि में प्राकृतिक चयन की
विकास प्रक्रिया ( Natural
Selection & Evolution ) से आ सकती हैं ? प्राकृतिक चयन या सामंजस्य (Adaptation) की
प्रक्रिया हज़ारों और लाखों वर्ष की अवधि में होती है और जो सर्वाधिक समर्थ है उसके
रक्षण (Survival of the Fittest) की
प्रक्रिया है। झूठ बोलना और बोल कर आडम्बर करना स्वभावगत (Behavioural) तो हो सकता
है लेकिन मेरे विचार से आनुवांशिक (Hereditary) ज्यादा है न कि प्राकृतिक
चयन या सामंजस्य (Adaptation and Natural Selection ) | विकास
विदों के अनुसार प्राकृतिक चयन की प्रक्रिया से आनुवांशिक बदलाव लगभग 30 जन्मों (Generations) में हो
सकता है । यह अवधि मनुष्य जाति के लिए 1,00,000 वर्षों
की अवधि से अवश्य ही बहुत कम है । यह एक हज़ार वर्षों की अवधि से भी कम है । लेकिन
झूठ बोलना हमेशा प्राण रक्षा मात्र के लिए नहीं होता । अगर झूठ बोलने वाला मनुष्य
अधिक वर्षों तक जी पाता तो शायद यह बदलाव प्राकृतिक चयन और प्राण रक्षा (Natural Selection and Survival
Instinct ) के उद्देश्य से हो सकता था लेकिन ऐसा नहीं है । झूठ बोलने की
मनुष्यों की यह प्रवृत्ति अपने
स्वार्थ की सिद्धि तथा दूसरों को धोखा देने के काम में आती है, प्राण रक्षा के लिए नहीं ।
सबसे प्रत्यक्ष उदाहरण है किसी के प्रेम को या किसी के साथ काम जनित सम्बन्ध को बनाने
के लिए बोला जाना वाला झूठ कि - " मैं तुमसे प्रेम करता हूँ "। यह झूठ
और अन्य इसी प्रकार के झूठ विपरीत लिंग वाले व्यक्ति की झूठी प्रसंशा कर उसे
शारीरिक संबंधों हेतु
प्रेरित करना होता है । कुछ
अंशों तक यह वंश विकास (Spreading
Progenies) के लिए हो सकता है लेकिन ऐसे झूठ बहुत ज्यादा बोले भी नहीं जाते और
सुने भी नहीं जाते ।
अगर किसी
से कहा गया की तुम कितने ऐसे उत्तर देते हो जो तुम्हारी जानकारी में भी गलत होते हैं, तो सामान्यत: उसका उत्तर
होगा की " कभी नहीं
" या फिर "कभी कभी " । लेकिन यह
उत्तर भी जानबूझ कर बोला हुआ झूठ है । हर मनुष्य स्वयं को सच्चा तथा सीधा और
ईमानदार समझाता है । लेकिन ऐसा वास्तव में होता नहीं है । यह हो सकता है कि आप ऐसा
झूठ नहीं बोलते जो जानबूझ कर अपने फायदे के लिए कहा गया हो या फिर किसी और के
नुकसान के लिए कहा गया हो लेकिन छोटे मोटे स्वाभाविक झूठ तो मनुष्य अपने आप
को भी बोलता है । कई इस प्रकार के छोटे झूठ जागृत (Consciously) अवस्था में भी बोले जाते हैं
और अर्धजागृत (Semiconscious) अवस्था
में भी कहे जाते हैं ।
आपको
शायद उन कारणों का पता भी नहीं होता जिन के चलते आप ऐसे झूठ बोलते हैं। कई बार तो
आप झूठ केवल इस कारण से बोलते हैं कि आप स्वयं को सत्यवादी और बिलकुल सही सिद्ध
करना चाहते हैं । ऐसे झूठ के अलग अलग कारण
हो सकते हैं । उदाहरणार्थ जब आप से पूछा जाता है कि
-
आप कैसे हैं ? तो आप सामान्यत: यही कहते
है कि " अच्छा हूँ " जबकि वास्तव में उसी समय आप किसी बात को लेकर आहत
या परेशान होते हैं या फिर शारीरिक रूप से भी बीमार होते हैं ।
जब आपकी
पत्नी आप से आकर पूछती है कि -
क्या मैं
इस वेश को धारण करने पर मोटी लग रही हूँ ?
तो आप यह
जानते हुए भी कि वह मोटी लग रही है, यह नहीं कहेंगे कि तुम मोटी लग रही हो । आप झूठ बोल
रहे हैं लेकिन आप का पक्ष यह है कि यह झूठ आपने अपनी पत्नी को खुश रखने के लिए कहा
। वास्तव में तो आपकी पत्नी भी यह जानती है कि आप उसका मन रखने के लिए यह बात कह
रहे हैं ।
यह
उपरोक्त झूठ जो आपके द्वारा कहे जाते हैं उनको " सफ़ेद झूठ "(White Lies) की श्रेणी में रखा जा सकता
है । क्योंकि इन प्रश्नों के साथ जुड़ी शुद्धता और ईमानदारी को अगर रंगो में रखा जाए तो
सफ़ेद रंग ही उचित नज़र आता है । यद्द्पि भारतीय परिपेक्ष में
"सफ़ेद झूठ" बिलकुल ही बेईमान झूठ और अनुचित झूठ को कहा जाता है ।
अब आगे
बढ़ते हैं । आप स्वप्न में कुछ काम प्रेरित आवाज़ करते हैं (Moaning) और आपकी
पत्नी आप से पूछती है, यह क्या हो रहा था ? आप कहते हैं कि मुझे कुछ
याद नहीं है । जबकि आप जानते हैं की आप स्वप्न में अपनी किसी महिला मित्र के साथ
रंगरेली मना रहे थे और वह आवाज़ सुप्तावस्था में आप पैदा कर बैठे ।
आप किसी
भिखारी से मिलते हैं और वह आपसे भीख मांगता है और आप कहते हैं कि भाई मेरे पास
छुट्टे पैसे नहीं है । जबकि आप जानते हैं कि आपके बटुए में ढेर सारे पैसे हैं और
उनमे से कुछ पैसे अगर आप भिखारी को दे देंगे तो आपकी सेहत में कोई फर्क पड़ने वाला
नहीं है । इस झूठ को बोलने का कारण सिर्फ यह था कि आप उसको भीख में पैसे नहीं देना
चाहते थे ।
आप घर
में हैं और एक फ़ोन आता है और फ़ोन करने वाला पूछता है कि क्या आप घर पर हैं ? वह आपकी आवाज़ नहीं पहचानता
और आप उससे बात नहीं करना चाहते,
इसलिए आप कह देते है कि आप घर पर नहीं हैं । यहाँ उपरोक्त प्रश्नों
के उत्तर में बोला गया झूठ थोड़ा भावनात्मक रूप से गलत है, उसका रंग पूरा सफ़ेद नहीं
अत: आप कह सकते हैं कि यह झूठ "भूरे झूठ" (Grey Lies) हैं । इन
झूठों के कहे जाने के उद्देश्य दुतरफा होते हैं । आप स्वयं को भी हानि से बचाना
चाहते हैं और प्रश्न पूछने वाले की भावनाओं को भी ठेस नहीं पहुँचाना
चाहते हैं ।
हर इंसान
की कुछ यादें होती हैं जिनको वह हर किसी को नहीं बता सकता, केवल अपने दोस्तों के साथ ही
बाँट सकता है । कुछ और भी मुद्दे हैं
जिन्हें वो अपने
दोस्तों के साथ भी नहीं बाँटना चाहता । वे ऐसे मुद्दे हैं जिन्हें वह गुप्त
रखना चाहता है । लेकिन कई ऐसे भी मुद्दे हैं जो वह स्वयं से भी नहीं बांटना चाहता
। कोई ऐसी बीमारी जिससे वह डरता है उसके लक्षणों को वह देख कर भी मानना नहीं चाहता
। ऐसे झूठ, उन
प्रश्नों के उत्तर में बोले जाते हैं जिनमे आप से अपनी कमियों के बारे में पूछा
जाता है । जैसे अगर सिगरेट पीने या शराब पीने वाले से पूछा जाये कि
-
तुम एक
दिन में कितनी सिगरेट पीते हो ?
या
तुम एक
दिन में कितने शराब के जाम पीते हो ?
तो वे
दोनों यही कहेंगे कि उन्होंने बहुत कम सिगरेट पी हैं या जाम पिए हैं । लेकिन
वास्तव में तो वे इन संख्याओं से कहीं अधिक सिगरेट या जाम पी चुके होते हैं । ये
झूठ सिर्फ स्वयं को धोखे में रखकर संतुष्टि प्राप्त करने बोले गए हैं अत:
इनका कोई रंग नहीं होता अत: इन झूठों को रंगहीन झूठ (Colourless Lies) कहा जाता
है । मनोचिकित्सा विज्ञान में इन झूठों को "स्वयं को धोखा देने वाले झूठ
" (Self Deceptive Lies) माना जाता है | अल्फ्रेड
लार्ड टेनिसन (Alfred Lord Tennyson) ने अपनी
कविता "इन मेमोरियम" (In
Memoriam) में एक पंक्ति से
प्रकृति का वर्णन करते हुए कहा कि - "Red in tooth and claw". तभी से
यह पंक्ति डार्विन के प्राकृतिक चयन (Natural Selection) के सिद्धांत को उद्धृत करने के काम
आती है । इसलिए वे झूठ जो मनुष्य को प्रजनन या प्रसारण (Reproduce
and Spread) का लाभ देते हैं
उन्हें लाल झूठ (Red Lies) कहा जाता
है । शायद यह झूठ मनुष्य प्रजाति के विकास की बुनियाद बनी थी । इन झूठों को हमारे
स्वभाव (Nature) या वंशानुक्रम (Heredity) में भी
देखा जा सकता है ।
कई बार
हम ऐसे उत्तर देते हैं जिन्हें हम जानते
हैं कि वे झूठ हैं लेकिन कई
अबूझ कारणों के कारण हम यह कहते हैं की वह
काफी हद तक सच है । अंग्रेजी का मुहावरा "True Blue" इन झूठों का नामाकरण करने
में काम लिया गया है अत: इन झूठों को "नीले झूठ" (Blue Lies) कहा जाता
है । चुनाव का सर्वे करने वाले ने प्रश्न किया कि -
क्या
पिछले बुधवार को हुए चुनाव में आपने वोट किया था ?
जिससे प्रश्न
पूछा गया था वह पिछले बुधवार को जो चुनाव हुआ उसमे वोट करने से चूक गया था लेकिन अन्यथा हमेशा
वोट डालता था और लगातार डालता रहा था । वह अपनी इस प्रतिष्ठा को कायम रखना चाहता
था इसलिए उसने उत्तर दिया कि हाँ उसने वोट डाला था ।
यदि एक
प्रोफेसर ने एक कम नंबर प्राप्त करने वाले छात्र से पूछा कि क्या तुमने परीक्षा के
लिए तैयारी हेतु कुछ पढ़ा था अथवा नहीं ?
तो छात्र
का उत्तर यही होगा कि उसने तैयारी की थी, पढाई की थी ।
अगर किसी
प्रतिष्ठित व्यक्ति से रात्रिभोज के समय पूछा जाए के आप कौन से रेडियो स्टेशन को
सुनते हैं तो वह यही कहेगा की वह सबसे अच्छे सरकारी रेडियो को सुनता है जबकि उसकी गाड़ी में
केवल एक तो बातचीत वाला रेडियो काम करता है और दूसरा पॉप संगीत वाला ।
ये सभी
उत्तर देने वाले एक ऐसा सत्य दिखाना चाहते हैं जो वास्तविकता से बहुत परे है । ऐसा
वे इसलिए कर रहे हैं कि वे दूसरों को अपनी वास्तविकता नहीं
बल्कि वह पक्ष दिखाना चाहते हैं जो उनके लिए फायदेमंद है । वे अपना एक अलग रूप
जनता को दिखाना चाहते हैं जो उनके उद्देश्यों की पूर्ति करता है । इस तथ्य को
समाजशास्त्री व्यक्तित्व प्रबंधन (Personality Management) का नाम देते हैं । इन्हें
नीले झूठ (Blue Lies) कहा जाता
है ।
अब तो आप
को सिर्फ एक झूठ और बताना है और वह है काला झूठ (Black Lie) | यह एक
ऐसा झूठ है जो जानबूझ कर बोला जाता है और किसी दूसरे को परेशानी में डालने के लिए
बोला जाता है । यह सबसे निकृष्ट प्रकार का झूठ है और निंदनीय है ।
लेकिन हम
में से अधिकतर लोग एक आवरण (Faccade)
ओढ़ कर रहते हैं एवं अपनी वास्तविक पहचान के ऊपर एक ओढ़ी हुई पहचान बना
लेते हैं । अगर हम में से किसी को भी यह प्रश्न पूछे जायें तो हमारे
उत्तर हमेशा ही हां में होंगे जबकि वास्तव में यह ऐसे प्रश्न हैं जिनके उत्तर हाँ
हो ही नहीं सकते ।
१. क्या
आप हमेशा उनके प्रति भी सौहार्दपूर्ण (Courteous) रहते हैं जिनके विचार आप से
नहीं मिलते या जो आपकी बात से सहमत नहीं ?
२. क्या
आप अपनी गलती के लिए सबसे क्षमा माँगते हैं ?
३. क्या
आप कस्टम से पास होते वक्त वे सभी चीज़े बताते हैं जिनके बारे में उनको पता नहीं कि
वे आपके पास हो सकती हैं |
अगर इन तीनों प्रश्नों
के उत्तर वास्तव में हाँ है तो फिर आप दुनिया के कुछ गिने चुने सत्यवादियों में से एक हो सकते हैं जिनका
अस्तिव अब लोप हो जाने की कगार पर है ।
वास्तव
में सत्यवादिता कोई प्रशसनीय वृत्ति अब रही
भी नहीं है क्योंकि सामान्यत: कोई आप से सत्य सुनना भी नहीं चाहता | गलती
से भी कोई कड़वा सच बोल दिया तो फिर तो आपकी शामत आ ही गई समझो । दर्पण
के सामने खड़ी महिला अपनी पहली वाली छवि से आत्म मुग्ध् है, अत: अब
अवस्था के साथ आ गए शारीरिक परिवर्तनों को पूर्णत: नकारती हुई यही कहेंगी कि मैं
अभी भी कितनी सुन्दर दिखती हूँ । और अगर आपने कुछ नापसंद बात कह दी तो बस फिर आप
की खैर नहीं । हमारी नित्य प्रति की सामान्य ज़िन्दगी छोटे मोटे कई झूठों के सहारे
ही चलती है । इन झूठों को बोले बिना शायद ख़ुशी से ज़िन्दगी गुज़र भी नहीं सकती ।
अपने जीवनसाथी को डार्लिंग , हनी , स्वीट हार्ट कह कह कर
ही आप उसे खुश रख सकते है, अन्यथा
नहीं । जबकि एक समय के बाद में घनिष्ठ
से घनिष्ठ प्रेम संबंधों
में भी "मैं तुम्हें प्यार करता / करती हूँ " कहना एक औपचारिकता बन कर
रह जाती है । इसीलिए शुरुआत
में मैंने कहा है कि सच बोलने से डरता हूँ, झूठ कह कर गुज़र मैं करता हूँ ।
पवन कुमार शर्मा
मुख्य आयकर आयुक्त
हुबली (कर्नाटक)
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