दोस्तों पेश-ए-ख़िदमत है एक पुरानी ग़ज़ल अर्ज़ किया है- ग़ज़ल -------------------------- सियासत की बिना पे क्या किसी को तू बनाता है यहाँ मुस्लिम का बधना भी कोई हिन्दू बनाता है//१ हमारी खाट को जुम्मन चचा बुनते हैं हाथों से और उसके वास्ते तोशक मदन काकू बनाता है//२ पढ़ा लिक्खा हो नेता या नहीं,मंसूब इससे क्या यहाँ सरकार की हर योजना बाबू बनाता है//३ अगर आदम का बच्चा है तो मिहनत की डगर पर चल किसी के सामने क्यों भीख का चुल्लू बनाता है//४ कोई चिमटा बनाता है बनाने के लिए रोटी उसी लोहे के टुकड़े से कोई चाक़ू बनाता है//५ ख़िरद को रब की जानिब मोड़ती हैं मुश्किलें जाँ की ज़मन का दर्द ही इंसाँ को चारा जू बनाता है//६ अगर शौहर को तू लड़ने की ताक़त दे नहीं सकता तो फिर बीवी को क्यों तू ऐ ख़ुदा गबरू बनाता है//७ हक़ीक़त 'र' पे भी है अयाँ ऐ ख़ालिके दुन्या मिटा सकता है उसको कौन जिसको तू बनाता है //८ सियासत-राजनीति बिना पे-आधार पे बधना-लोटा,utensil(made of clay)with a pipe to wash;for ablution तोशक-खाट पे बिछाने वाला गद्दा मंसूब-संबंधित आदम-आदमी चुल्लू-अंजुलि ख़िरद-बुद्धि,अक़्ल जानिब-तरफ़,जानिब ज़मन-समय,ज़माना,काल,संसार चारा जू-समाधान ढूँढने वाला गबरू-हृष्ट-पुष्ट अयाँ-स्पष्ट,ज़ाहिर,दृष्टिगोचर,प्रकट,व्यक्त ख़ालिके दुन्या-दुनिया की रचना करने वाला अर्थात ईश्वर