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A personal blog by Pavan Kumar "Paavan"
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12:51 PM
Article Published by : PAVAN KUMAR SHARMA,' PAAVAN &MAAHIR
वो दिल कहां से लाऊं,जो चाय के कप प्लेट्स के खनकने की आवाज भुला दे! पत्थर तो हज़ारों ने मारे थे मुझे,लेकिन जो दिल पर लगा, वो एक दोस्त का मारा हुआ पत्थर था! पहले ज़माना था जब दिन भर चाय के बर्तन खनकते थे और हमारा ड्राइंग रूम दोस्तों के कहकहों से गूंजता था। याद है वे दिन, जब अजमेर में हर रात 10 बजे हम सारे दोस्त रेलवे स्टेशन के सामने क्लॉक टावर थाने के पास इकट्ठा होते थे। वहाँ से रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म पर चाय की चुस्कियाँ लेते, घूमते-घूमते गप्पे मारते, और दुनिया जहान की बातें करते। (उसे जमाने में चर्चा का टॉपिक आज की तरह मोदी का पक्ष विपक्ष नहीं होता था। कोई भी मित्र किसी भी विषय पर पूर्वाग्रह दूराग्रह से ग्रस्त नहीं होता था।) रात के 2 बजे तक ये सिलसिला चलता, और मज़े की बात? इसमें किसी दोस्त की गैरहाजिरी न के बराबर होती थी 100% अटेंडेंस! लेकिन अब? अब तो हाल ये है कि किसी दोस्त या रिश्तेदार का फोन आता है, तो मन में पहला ख्याल यही आता है, “कहीं PNB से एजुकेशन लोन की बात तो नहीं?” दोस्ती का मतलब जैसे ज़रूरत बनकर रह गया है। क्या हमने कभी सोचा कि सच्ची दोस्ती हमारे जीवन का कितना बड़ा खज़ाना है? आजकल दोस्ती का स्थान “नेटवर्क” शब्द ने ले लिया है। नेटवर्क, यानी बहुत से लोगों से ऐसी जान-पहचान जिसमें आप उनके लाभ के लिए काम करेंगे और वो आपके लिए। इसमें निस्वार्थ दोस्ती का स्थान कहाँ? अब दोस्ती वो नहीं रही जो बिना किसी स्वार्थ के दिल से दिल तक जाती थी। अब तो लोग “कनेक्शन्स” बनाते हैं, लिंक्डइन पर फॉलो करते हैं, और कॉफी मीटिंग्स में बिजनेस कार्ड्स बाँटते हैं। लेकिन क्या ये नेटवर्किंग उस गर्मजोशी की जगह ले सकती है, जो अजमेर की रातों में चाय की चुस्कियों और बेपरवाह गपशप में थी? हमारी ज़िंदगी में दोस्ती धीरे-धीरे कहीं खो सी रही है। ज्यादातर लोग अपने बीवी बच्चों और अधिक से अधिक 'डॉग' तक सीमित रह गए हैं। एक अमेरिकी सर्वे के मुताबिक, 1990 से अब तक “कोई करीबी दोस्त नहीं” कहने वालों की संख्या चार गुना बढ़ गई है। भारत में भले ही कोई औपचारिक सर्वे न हो, लेकिन शहरी ज़िंदगी को देखकर लगता है कि हम भी उसी राह पर हैं। ऑफिस, ट्रैफिक, मोबाइल स्क्रीन, और पारिवारिक ज़िम्मेदारियों के बीच हमने दोस्तों के लिए वक्त निकालना लगभग छोड़ दिया है। पहले गली-मोहल्ले में शाम को क्रिकेट, चाय की टपरी पर गपशप, या त्योहारों पर दोस्तों का जमावड़ा आम था। आज हम अकेले बैठकर सोशल मीडिया स्क्रॉल करते हैं, और दोस्ती व्हाट्सएप स्टेटस तक सिमट गई है। सच्चे दोस्त सिर्फ हंसी-मज़ाक का बहाना नहीं, बल्कि हमारी ज़िंदगी का आधार हैं। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के 80 साल के एक अध्ययन में साफ कहा गया है कि जीवन में खुशी और सेहत का सबसे बड़ा स्रोत धन या करियर की सफलता नहीं, बल्कि करीबी रिश्ते और दोस्ती है। जब आपका दोस्त आपकी बात सुनता है, बिना जज किए सलाह देता है, या बस आपके साथ हंसता है, तो तनाव अपने आप कम हो जाता है। एक अच्छा दोस्त डिप्रेशन और अकेलेपन से लड़ने में सबसे बड़ा सहारा होता है। शोध बताते हैं कि सामाजिक अलगाव से हृदय रोग और डिमेंशिया का खतरा बढ़ता है, जो रोज़ 15 सिगरेट पीने जितना नुकसानदायक है। दोस्तों के साथ समय बिताने से ब्लड प्रेशर नियंत्रित रहता है और इम्यूनिटी मज़बूत होती है। त्योहारों पर दोस्तों के साथ मस्ती, रात को लंबी गपशप, या एक साथ ट्रिप प्लान करना – ये वो पल हैं जो ज़िंदगी को यादगार बनाते हैं। पहले दोस्ती अपने आप बन जाती थी – स्कूल, कॉलेज, मोहल्ले, या धार्मिक आयोजनों में। लेकिन अब ज़िंदगी की भागदौड़ में दोस्ती को वक्त देना एक सचेत प्रयास मांगता है। पहले लोग मंदिर, गुरुद्वारे, या सामुदायिक आयोजनों में मिलते थे; अब हम अपने फोन और पालतू जानवरों में ज्यादा व्यस्त हैं। हां, पालतू जानवर! मेरे कई दोस्तों ने अपने डॉगी की सैर के चक्कर में मिलना-जुलना छोड़ दिया है। बॉनी वेयर की किताब में एक बात दिल को छू जाती है: “काश मैं अपने दोस्तों के संपर्क में रहता।” ये पछतावा हमें आज से सबक लेने की याद दिलाता है। दोस्ती में समय, मेहनत, और सच्चाई चाहिए। एक फोन कॉल, एक छोटी-सी मुलाकात, या बस एक मैसेज – ये छोटे-छोटे कदम दोस्ती को ज़िंदा रख सकते हैं। दोस्ती अब हमारे रोज़मर्रा का हिस्सा नहीं रही; ये अब तभी संभव है जब बाकी ज़िम्मेदारियां पूरी करने के बाद वक्त बचे। लेकिन दोस्ती को विलासिता नहीं, ज़रूरत बनाएं। अपने दोस्तों को समय दें – उनके साथ कॉफी पीएं, पुरानी यादें ताज़ा करें, या एक छोटा-सा गेट-टुगेदर प्लान करें। माफ करें, भूलें, और ज़रूरत पड़े तो माफी मांग लें। साथ मिलकर यात्राएं प्लान करें, हंसी-मज़ाक करें, और यादें बनाएं। जैसा कि मिर्ज़ा ग़ालिब ने कहा, “दोस्तों के साथ जी लेने का मौका दे दे ऐ खुदा… तेरे साथ तो मरने के बाद भी रह लेंगे” तो आज ही अपने दोस्त को फोन करें, मिलने का प्लान बनाएं, मग के बजाय कप प्लेट्स में चाय पीने पिलाने का सिलसिला फिर से शुरू करें और अपनी ज़िंदगी में दोस्ती का रंग फिर से भरें। चलते चलते व्हाट्सएप के फोर्वेडेड मैसेजज को पर्सनल कॉल का विकल्प न बनाएं।
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