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6 दिसम्बर/इतिहास-स्मृति श्रीराम जन्मभूमि मन्दिर

6 दिसम्बर/इतिहास-स्मृति राष्ट्रीय कलंक का परिमार्जन! भारत में विधर्मी आक्रमणकारियों ने बड़ी संख्या में हिन्दू मन्दिरों का विध्वंस किया। स्वतन्त्रता के बाद सरकार ने मुस्लिम वोटों के लालच में ऐसी मस्जिदों, मजारों आदि को बना रहने दिया। इनमें से श्रीराम जन्मभूमि मन्दिर (अयोध्या), श्रीकृष्ण जन्मभूमि (मथुरा) और काशी विश्वनाथ मन्दिर के सीने पर बनी मस्जिदें सदा से हिन्दुओं को उद्वेलित करती रही हैं। इनमें से श्रीराम मन्दिर के लिए विश्व हिन्दू परिषद् ने देशव्यापी आन्दोलन किया, जिससे 6 दिसम्बर, 1992 को वह बाबरी ढाँचा धराशायी हो गया। श्रीराम मन्दिर को बाबर के आदेश से उसके सेनापति मीर बाकी ने 1528 ई. में गिराकर वहाँ एक मस्जिद बना दी। इसके बाद से हिन्दू समाज एक दिन भी चुप नहीं बैठा। वह लगातार इस स्थान को पाने के लिए संघर्ष करता रहा। 23 दिसम्बर, 1949 को हिन्दुओं ने वहाँ रामलला की मूर्ति स्थापित कर पूजन एवं अखण्ड कीर्तन शुरू कर दिया। 'विश्व हिन्दू परिषद्' द्वारा इस विषय को अपने हाथ में लेने से पूर्व तक 76 हमले हिन्दुओं ने किये; जिसमें देश के हर भाग से तीन लाख से अधिक नर नारियों का बलिदान हुआ; पर पूर्ण सफलता उन्हें कभी नहीं मिल पायी। विश्व हिन्दू परिषद ने लोकतान्त्रिक रीति से जनजागृति के लिए श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति का गठन कर 1984 में श्री रामजानकी रथयात्रा निकाली! जो सीतामढ़ी से प्रारम्भ होकर अयोध्या पहुँची। इसके बाद हिन्दू नेताओं ने शासन से कहा कि श्री रामजन्मभूमि मन्दिर पर लगे अवैध ताले को खोला जाए। न्यायालय के आदेश से 1 फरवरी, 1986 को ताला खुल गया। इसके बाद वहाँ भव्य मन्दिर बनाने के लिए 1989 में देश भर से श्रीराम शिलाओं को पूजित कर अयोध्या लाया गया और बड़ी धूमधाम से 9 नवम्बर, 1989 को श्रीराम मन्दिर का शिलान्यास कर दिया गया। जनता के दबाव के आगे प्रदेश और केन्द्र शासन को झुकना पड़ा। पर मन्दिर निर्माण तब तक सम्भव नहीं था, जब तक वहाँ खड़ा ढांँचा न हटे। हिन्दू नेताओं ने कहा कि यदि मुसलमानों को इस ढाँचे से मोह है, तो वैज्ञानिक विधि से इसे स्थानान्तरित कर दिया जाए; पर शासन मुस्लिम वोटों के लालच से बँधा था। वह हर बार न्यायालय की दुहाई देता रहा। विहिप का तर्क था कि आस्था के विषय का निर्णय न्यायालय नहीं कर सकता। शासन की हठधर्मी देखकर हिन्दू समाज ने आन्दोलन और तीव्र कर दिया। इसके अन्तर्गत 1990 में वहाँ कारसेवा का निर्णय किया गया,तब उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह की सरकार थी। उन्होेंने घोषणा कर दी कि बाबरी परिसर में एक परिन्दा तक पर नहीं मार सकता; पर हिन्दू युवकों ने शौर्य दिखाते हुए 29 अक्तूबर को गुम्बदों पर भगवा फहरा दिया। बौखला कर दो नवम्बर को मुलायम सिंह ने गोली चलवा दी, जिसमें कोलकाता के दो सगे भाई राम और शरद कोठारी सहित सैकड़ों कारसेवकों का बलिदान हुआ। इसके बाद प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी। एक बार फिर 6 दिसम्बर, 1992 को कारसेवा की तिथि निश्चित की गयी। हिप की योजना तो केन्द्र शासन पर दबाव बनाने की ही थी; पर युवक आक्रोशित हो उठे। उन्होंने वहाँ लगी तार बाड़ के खम्भों से प्रहार कर बाबरी ढाँचे के तीनों गुम्बद गिरा दिये। सके बाद विधिवत वहाँ श्री रामलला को भी विराजित कर दिया गया। इस प्रकार वह बाबरी कलंक नष्ट हुआ और तुलसी बाबा की यह उक्ति भी प्रमाणित हुई-होई है सोई, जो राम रचि राखा।

"बा-अदब ! बा-मुलाहिज़ा ! होशियार !

नाम में क्या रखा है? दिल में रखो तो बात बने! 'इज़्ज़त शब्दों की पोशाक में नहीं,नीयत की धड़कनों में रहती है'। कभी-कभी लोग नामों की इबारत में ऐसी गंभीरता ढूंढ लेते हैं,जैसे दिल का GPS वहीं अटका हुआ हो,या जैसे जीवन की पूरी श्रद्धा वहीं टंगी हो। आज एक भाई ने शिकायत दर्ज कराई कि- आप“हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम” या “हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा को" सिर्फ़ मुहम्मद कह देते हैं,इससे दुख होता है।" मैंने विनम्रता की चाय घोलते हुए कहा,कि भैया- हमारे यहां तो श्रीकृष्ण कभी कृष्ण,श्रीराम कभी राम,और हनुमानजी कभी हनुमान ही कह दिए जाते हैं! किसी की श्रद्धा को इससे चोट नहीं लगती,क्योंकि प्यार शब्दों की लंबाई से नहीं,दिल की चौड़ाई से चलता है। मैंने हल्की-सी शरारत के साथ पूछा कि अगर नामों को लेकर इतनी ही शाही गैरत है,और बात नामों की गरिमा तक जा ही पहुंची! तो क्या फिर अकबर बादशाह के आगमन के उद्घोष की तरह यूँ सम्बोधित किया जाए,अर्थात “आपका मतलब ये वाला अंदाज़ तो नहीं?” "शाहे-ंशाह,बादशाह अकबर आलमपनाह तशरीफ़ ला रहे हैं!" या अधिक फ़ारसी-राजसी रूप में: "हज़रत-ए-बादशाह अकबर,जलालुद्दीन मुहम्मद,आलमपनाह! बारगाह में तशरीफ़ ला रहे हैं!" या फिर, "बा-अदब! बा-मुलाहिज़ा! होशियार! हुज़ूर-ए-आलिया, बादशाह-ए-हिंद तशरीफ़ ला रहे हैं!" और साथ में एक दरबारी मुनादी ची (उद्घोषक) भी नियुक्त कर लिया जाए?

Epigenetics;-पराजेनेटिक परिवर्तन ‌।

पराजेनेटिक परिवर्तन ‌। मिथाइलेशन एपिजेनेटिक्स इन एक्शन: द हनीबी स्टोरी एपिजेनेटिक्स बताता है कि अंतर्निहित डीएनए अनुक्रम को बदले बिना जीन अभिव्यक्ति कैसे बदल सकती है । एक आकर्षक उदाहरण मधुमक्खियों (एपिस मेलिफेरा) से आता है । रानी और श्रमिक मधुमक्खियां आनुवंशिक रूप से समान हैं, फिर भी वे व्यवहार, शरीर विज्ञान और उपस्थिति में भिन्न हैं । मुख्य अंतर? आहार। रानी मधुमक्खियों को शाही जेली खिलाई जाती है, जबकि श्रमिक मधुमक्खियों को अमृत प्राप्त होता है । रॉयल जेली में ऐसे यौगिक होते हैं जो एंजाइम साइटोसिन मिथाइलट्रांसफेरेज़ को रोकते हैं, जो सामान्य रूप से डीएनए पर साइटोसिन बेस में मिथाइल समूह (–सीएच) जोड़ता है । जब मिथाइलेशन अवरुद्ध होता है, तो कुछ जीन सक्रिय हो जाते हैं, जिससे रानी मधुमक्खी का विकास होता है । वैज्ञानिकों ने भी इस प्रभाव को दोहराया है—शाही जेली जैसी स्थितियों को देखते हुए कार्यकर्ता मधुमक्खियों ने रानी जैसे लक्षण विकसित करना शुरू कर दिया है । यह एपिजेनेटिक्स है: डीएनए मिथाइलेशन या हिस्टोन प्रोटीन में संशोधन जैसे परिवर्तन जो डीएनए अनुक्रम को बदले बिना जीन अभिव्यक्ति को प्रभावित करते हैं । अन्य उदाहरणों में शामिल हैं: हिस्टोन संशोधन (मिथाइल या फॉस्फेट समूह) एक्स-महिला स्तनधारियों में निष्क्रियता, जहां भ्रूण के विकास के दौरान एक एक्स गुणसूत्र बेतरतीब ढंग से बंद हो जाता है । बायोकैमिस्ट्री एपिजेनेटिक्स जेनेटिक्स डीएनए मिथाइलेशन

न्यूरोलिंग्विस्टिक्स,और भाषा

न्यूरोलिंग्विस्टिक्स,और भाषा यह उस पर कंप्यूटर घटकों के साथ एक मस्तिष्क दिखाता है यह इस विचार को मजबूत करता है कि मस्तिष्क पहले से अधिक तरल और संदर्भ-संचालित तरीके से अर्थ को एकीकृत करता है । मस्तिष्क भाषा के लिए एआई जैसी संगणना का उपयोग करता है। सारांश: मानव मस्तिष्क एक चरण-दर-चरण अनुक्रम में बोली जाने वाली भाषा को संसाधित करता है जो बारीकी से मेल खाता है कि बड़े भाषा मॉडल पाठ को कैसे बदलते हैं । पॉडकास्ट सुनने वाले लोगों से इलेक्ट्रोकार्टिकोग्राफी रिकॉर्डिंग का उपयोग करते हुए, शोधकर्ताओं ने पाया कि शुरुआती मस्तिष्क प्रतिक्रियाएं शुरुआती एआई परतों के साथ संरेखित होती हैं, जबकि गहरी परतें ब्रोका के क्षेत्र जैसे क्षेत्रों में बाद में तंत्रिका गतिविधि के अनुरूप होती हैं । निष्कर्ष भाषा के पारंपरिक सिद्धांतों को चुनौती देते हैं जो गतिशील, संदर्भ-संचालित गणना को उजागर करने के बजाय निश्चित नियमों पर भरोसा करते हैं । टीम ने भाषाई विशेषताओं के साथ तंत्रिका संकेतों को जोड़ने वाला एक समृद्ध डेटासेट भी जारी किया, जो भविष्य के तंत्रिका विज्ञान अनुसंधान के लिए एक शक्तिशाली संसाधन प्रदान करता है । मुख्य तथ्य स्तरित संरेखण: प्रारंभिक मस्तिष्क प्रतिक्रियाओं ने शुरुआती एआई मॉडल परतों को ट्रैक किया, जबकि गहरी परतें बाद में तंत्रिका गतिविधि के साथ संरेखित हुईं । नियमों पर संदर्भ: एआई-व्युत्पन्न प्रासंगिक एम्बेडिंग ने शास्त्रीय भाषाई इकाइयों की तुलना में मस्तिष्क गतिविधि की बेहतर भविष्यवाणी की । नया संसाधन: शोधकर्ताओं ने भाषा तंत्रिका विज्ञान में तेजी लाने के लिए एक बड़ा तंत्रिका–भाषाई डेटासेट जारी किया । नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशित एक अध्ययन में, हिब्रू विश्वविद्यालय के डॉ एरियल गोल्डस्टीन के नेतृत्व में शोधकर्ताओं ने प्रिंसटन विश्वविद्यालय के प्रोफेसर उरी हसन और एरिक हैम के साथ गूगल रिसर्च के डॉ मारियानो स्कैन के सहयोग से, हमारे दिमाग के बीच एक आश्चर्यजनक संबंध का खुलासा किया । तीस मिनट के पॉडकास्ट को सुनने वाले प्रतिभागियों से इलेक्ट्रोकार्टिकोग्राफी रिकॉर्डिंग का उपयोग करते हुए, टीम ने दिखाया कि मस्तिष्क एक संरचित अनुक्रम में भाषा को संसाधित करता है जो जीपीटी -2 और लामा 2 जैसे बड़े भाषा मॉडल के स्तरित वास्तुकला को प्रतिबिंबित करता है । अध्ययन में क्या पाया गया जब हम किसी को बोलते हुए सुनते हैं, तो हमारा मस्तिष्क प्रत्येक आने वाले शब्द को तंत्रिका गणनाओं के कैस्केड के माध्यम से बदल देता है । गोल्डस्टीन की टीम ने पाया कि ये परिवर्तन समय के साथ एक पैटर्न में सामने आते हैं जो एआई भाषा मॉडल की स्तरीय परतों को समानता देता है । प्रारंभिक एआई परतें शब्दों की सरल विशेषताओं को ट्रैक करती हैं, जबकि गहरी परतें संदर्भ, स्वर और अर्थ को एकीकृत करती हैं । अध्ययन में पाया गया कि मानव मस्तिष्क गतिविधि एक समान प्रगति का अनुसरण करती है: प्रारंभिक तंत्रिका प्रतिक्रियाएं प्रारंभिक मॉडल परतों के साथ संरेखित होती हैं, और बाद में तंत्रिका प्रतिक्रियाएं गहरी परतों के साथ संरेखित होती हैं । यह संरेखण ब्रोका के क्षेत्र जैसे उच्च-स्तरीय भाषा क्षेत्रों में विशेष रूप से स्पष्ट था, जहां शिखर मस्तिष्क की प्रतिक्रिया बाद में गहरी एआई परतों के लिए हुई थी । गोल्डस्टीन के अनुसार, " हमें सबसे ज्यादा आश्चर्य हुआ कि मस्तिष्क के लौकिक अर्थ का खुलासा बड़े भाषा मॉडल के अंदर परिवर्तनों के अनुक्रम से कितना मेल खाता है । भले ही इन प्रणालियों को बहुत अलग तरीके से बनाया गया हो, दोनों को समझने की दिशा में एक समान चरण-दर-चरण बिल्डअप पर अभिसरण लगता है" यह क्यों मायने रखता है निष्कर्ष बताते हैं कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता केवल पाठ उत्पन्न करने का एक उपकरण नहीं है । यह यह समझने में एक नई विंडो भी पेश कर सकता है कि मानव मस्तिष्क कैसे अर्थ को संसाधित करता है । दशकों तक, वैज्ञानिकों का मानना था कि भाषा की समझ प्रतीकात्मक नियमों और कठोर भाषाई पदानुक्रमों पर निर्भर करती है । यह अध्ययन उस दृष्टिकोण को चुनौती देता है । इसके बजाय, यह भाषा के लिए एक अधिक गतिशील और सांख्यिकीय दृष्टिकोण का समर्थन करता है, जिसमें अर्थ प्रासंगिक प्रसंस्करण की परतों के माध्यम से धीरे-धीरे उभरता है । शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि शास्त्रीय भाषाई विशेषताएं जैसे कि फोनेम और मॉर्फेम ने मस्तिष्क की वास्तविक समय की गतिविधि के साथ-साथ एआई-व्युत्पन्न प्रासंगिक एम्बेडिंग की भविष्यवाणी नहीं की थी । यह इस विचार को मजबूत करता है कि मस्तिष्क पहले से अधिक तरल और संदर्भ-संचालित तरीके से अर्थ को एकीकृत करता है । तंत्रिका विज्ञान के लिए एक नया बेंचमार्क क्षेत्र को आगे बढ़ाने के लिए, टीम ने सार्वजनिक रूप से भाषाई विशेषताओं के साथ जोड़े गए तंत्रिका रिकॉर्डिंग का पूरा डेटासेट जारी किया । यह नया संसाधन दुनिया भर के वैज्ञानिकों को प्रतिस्पर्धी सिद्धांतों का परीक्षण करने में सक्षम बनाता है कि मस्तिष्क प्राकृतिक भाषा को कैसे समझता है, कम्प्यूटेशनल मॉडल के लिए मार्ग प्रशस्त करता है जो मानव अनुभूति से अधिक निकटता से मिलते जुलते हैं । प्रमुख सवालों के जवाब दिए: प्रश्न: मस्तिष्क की भाषा प्रसंस्करण एआई मॉडल से कैसे मिलती है? ए: मस्तिष्क बोली जाने वाली भाषा को संगणना के अनुक्रम के माध्यम से बदल देता है जो बड़े भाषा मॉडल की उत्तरोत्तर गहरी परतों के साथ संरेखित होता है । प्रश्न: अर्थ समझने के लिए यह अध्ययन क्यों महत्वपूर्ण है? ए: यह भाषा के नियम-आधारित सिद्धांतों को चुनौती देता है, इसके बजाय यह सुझाव देता है कि अर्थ आधुनिक एआई सिस्टम के समान गतिशील, संदर्भ-संचालित प्रसंस्करण के माध्यम से उभरता है । प्रश्न: शोधकर्ताओं ने क्या संसाधन जारी किया? ए: भाषाई सुविधाओं के साथ इलेक्ट्रोकार्टिकोग्राफी रिकॉर्डिंग को सार्वजनिक रूप से उपलब्ध डेटासेट, प्रतिस्पर्धी भाषा सिद्धांतों के नए परीक्षणों को सक्षम करता है । नोट्:- यह लेख एक तंत्रिका विज्ञान समाचार संपादक द्वारा संपादित किया गया था । सार अस्थायी संरचना की प्राकृतिक भाषा प्रसंस्करण में मानव मस्तिष्क से मेल खाती स्तरित पदानुक्रम की बड़ी भाषा मॉडल बड़े भाषा मॉडल (एलएलएम) मानव मस्तिष्क में भाषा प्रसंस्करण को समझने के लिए एक रूपरेखा प्रदान करते हैं । पारंपरिक मॉडल के विपरीत, एलएलएम स्तरित संख्यात्मक एम्बेडिंग के माध्यम से शब्दों और संदर्भ का प्रतिनिधित्व करते हैं । यहां, हम प्रदर्शित करते हैं कि एलएलएमएस की परत पदानुक्रम मस्तिष्क में भाषा की समझ की अस्थायी गतिशीलता के साथ संरेखित होती है । 30 मिनट की कथा सुनने वाले प्रतिभागियों से इलेक्ट्रोकार्टिकोग्राफी (ईसीओजी) डेटा का उपयोग करते हुए, हम दिखाते हैं कि गहरी एलएलएम परतें बाद की मस्तिष्क गतिविधि से मेल खाती हैं, खासकर ब्रोका के क्षेत्र और अन्य भाषा से संबंधित क्षेत्रों में । हम जीपीटी -2 एक्सएल और लामा -2 से प्रासंगिक एम्बेडिंग निकालते हैं और समय के साथ तंत्रिका प्रतिक्रियाओं की भविष्यवाणी करने के लिए रैखिक मॉडल का उपयोग करते हैं । हमारे परिणाम समझ के दौरान मॉडल की गहराई और मस्तिष्क की अस्थायी ग्रहणशील खिड़की के बीच एक मजबूत संबंध प्रकट करते हैं । हम प्रतीकात्मक दृष्टिकोणों के साथ एलएलएम-आधारित भविष्यवाणियों की तुलना भी करते हैं, मस्तिष्क की गतिशीलता को पकड़ने में गहन शिक्षण मॉडल के लाभों पर प्रकाश डालते हैं । हम भाषा प्रसंस्करण के प्रतिस्पर्धी सिद्धांतों का परीक्षण करने के लिए अपने संरेखित तंत्रिका और भाषाई डेटासेट को एक सार्वजनिक बेंचमार्क के रूप में जारी करते हैं । एआईकृत्रिम बुद्धि मस्तिष्क अनुसंधान ब्रोका का क्षेत्र ज्ञान गहरी सीखना जेरूसलेम लंगागेल मशीन सीख

जलेबी तेरे कितने नाम..

जलेबी जलेबी यह शब्द वैदिक साइंस पेज पर सुनकर थोड़ा सा अचंभित होना स्वभाविक है किन्तु वास्तविकता यह है कि जलेबी हमारी संस्कृति का हिस्सा है जो की औषधि के साथ साथ बहुत ही स्वादिष्ट मिष्ठान भी है जो काफी गुणकारी भी है तो चलिए आज आपको जलेबी के विषय में कुछ रोचक और दुर्लभ जानकारी देते हैं दुनिया के 90 फीसदी लोग जलेबी का संस्कृत और अंग्रेजी नाम नहीं जानते? सुबह जलेबी के नाश्ते में है बहुत गुणकारी, साथ ही जाने…. जलेबी से जुड़े दिलचस्प किस्से….. क्या है जलेबी? – जाने उलझनें भी मीठी हो सकती हैं, जलेब,इस बात की मिसाल है। जलेबी का जलजला जलेबी में जल तत्व की अधिकता होने से इसे जलेबी कहा जाता है। मानव शरीर में 70 फीसदी पानी होता है, इसलिए इसे खाने से जलतत्व की पूर्ति होती है। जलेबी को रोगनाशक ओषधि भी बताया है। गर्म जलेबी चर्म रोग की बेहतरीन चिकित्सा है। जलेबी तेरे कितने नाम.. संस्कृत में कुण्डलिनी, महाराष्ट्र में जिलबी तथा बंगाल में जिलपी कहते है । जलेबी का भारतीय नाम जलवल्लिका है। अंग्रेजी में जलेबी को स्वीट्मीट (Sweetmeet) और सिरप फील्ड रिंग कहते हैं। जलेबी के भेद वेद में भी लिखे है। महिलाएं अपने केशों से “जलेबी जूड़ा” भी बनाती हैं। जलेबी का जलवा… बंगाल में पनीर की, बिहार में आलू की, उत्तरप्रदेश में आम की, म.प्र. के बघेलखण्ड-रीवा, सतना में मावा की जलेबी खाने का भारी प्रचलन है। कहीं-कहीं चावल के आटे की और उड़द की दाल की जलेबी का भी प्रचलन है। ग्रामीण क्षेत्रों में दूध-जलेबी का नाश्ता करते हैं। जलेबी तेरे रूप अने जलेबी डेढ अण्टे, ढाई अण्टे और साढे तीन अण्टे की होती है। अंगूर दाना जलेबी, कुल्हड़ जलेबी आदि की बनावट वाली गोल-गोल बनती है। जलेबी से तात्पर्य…. जलेबी दो शब्दों से मिलकर बनता है। जल +एबी अर्थात् यह शरीर में स्थित जल के ऐब (दोष) दूर करती है। शरीर में आध्यात्मिक शक्ति, सिद्धि एवं ऊर्जा में वृद्धि कर स्वाधिष्ठान चक्र जाग्रत करने में सहायक है। जलेबी के खाने से शरीर के सारे ऐब (रोग दोष )जल जाते हैं । जलेबी ओषधि भी है…. जलेबी अर्थात जल+एबी। यह शरीर में जल के ऐब, जलोदर की तकलीफ मिटाती है। जलेबी की बनावट शरीर में कुण्डलिनी चक्र की तरह होती है। अघोरी की तिजोरी….. अघोरी सन्त आध्यात्मिक सिद्धि तथा कुण्डलिनी जागरण के लिए सुबह नित्य जलेबी खाने की सलाह देते हैं । मैदा, जल, मीठा, तेल और अग्नि इन 5 चीजों से निर्मित जलेबी में पंचतत्व का वास होता है । जलेबी खाने से पंचमुखी महादेव, पंचमुखी हनुमान तथा पाॅंच फनवाले शेषनाग की कृपा प्राप्त होती है! अपने ऐब (दोष) जलाने, मिटाने हेतु नित्य जलेबी खाना चाहिये । वात-पित्त-कफ यानि त्रिदोष की शांति के लिए सुबह खाली पेट दही के साथ, वात विकार से बचने के लिए-दूध में मिलाकर और कफ से मुक्ति के लिए गर्म-गर्म चाशनी सहित जलेबी खावें । रोग निवारक जलेबी…. 【】जलेबी ओषधि भी है जो लोग सिरदर्द, माईग्रेन से पीड़ित हैं वे सूर्योदय से पूर्व प्रातः खाली पेट २से 3 जलेबी चाशनी में डुबोकर खाकर पानी नहीं पीएं सभी तरह मानसिक विकार जलेबी के सेवन सेे नष्ट हो जाते हैं। 【】जलेबी पीलिया से पीड़ित रोगियों के लिए यह चमत्कारी ओषधि है। सुबह खाने से पांडुरोग दूर हो जाता है। 【】जिन लोगों के पैर की बिम्बाई फटने या त्वचा निकलने की परेशानी रहती हो हो वे 21 दिन लगातार जलेबी का सेवन करें। जलेबी का जलवा…. जलवा दिखाने की इच्छा रखने वालों को हमेशा सुबह नाश्ते में जलेबी जरूर खाना चाहिये, जिन्हे ईश्वर से जुड़ने की कामना हो, तब जलेबी खायें। आयुर्वेदिक जड़ी बूटी जलेबी… जंगली जलेबी नामक फल उदर एवं मस्तिष्क रोगों का नाश करता है। भावप्रकाश निघण्टु में उल्लेख है – जो जंगल जलेबी खावै, दुःख संताप मिटावै। जलेबी खाये जगत गति पावै! जलेबी खाने वालों को ब्रह्मचर्य का विधिवत् पालन करना चाहिये । ‘‘टपकी जाये जलेबी रस की’’ अतः आयुर्वेद में विवाह होने तक स्वयं पर अंकुश रखने का निर्देश है। जलेबी केे फायदे… जलने, कुढन में उलझे लोग यदि जानवरों को जलेबी खिलाये तो मन शांत होता है। क्योंकि मन में अमन है, तो तन चमन बन जाता है और तन ही हमारा वतन है नहीं तो सबका पतन हो जाता है इसे जतन से संभालो। जलेबी की कहावतें….. खाये जलेबी बनो दयालु तहि चीन्हे नर कोई। तत्पर हाल-निहाल करत हैं रीझत है निज सोई। जलेबी खाने से दया, उदारता उत्पन्न होती है। पहचान बनती है। आत्मविश्वास आता है। टूटी की नही बनी है बूटी झूठी की नही बनी है खूॅंटी फूटी को नही बनी है सूठी रूठी तो बने काली कलूटी अर्थात- जिस व्यक्ति का आत्मविश्वास अंदर से टूट जाये उसको ठीक करने की कोई बूटी यानी ओषधि आज तक नहीं बनी है। जो आदमी बार -बार बदलता है इनकी एक खूटी यानि ठिकाना नही होता। जिसकी किस्मत फूटी हो, जो भाग्यहीन हो, उसका भला सूफी-संत भी नही कर सकते और स्त्री रूठ जाये तो काली का भयंकर रूप धारण कर लेती है। अतः इन सबका इलाज जलेबी है। रोज सुबह जलेबी खाओ। भव सागर से पार लगाओ । खाली पेट करे मुख मीठा विद्वान वाद-विवाद बसो दे झूठा ….. बाबा कीनाराम सिद्ध अवधूत लिखते हैं – बिनु देखे बिनु अर्स-पर्स बिनु, प्रातः जलेबी खाये जोई । तन-मन अन्तर्मन शुद्ध होवे वर्ष में निर्धन रहे न कोई एक संत ने जलेबी का नाता आदिकाल से वताया है- पार लगावे चैरासी से, मत ढूके इत और। जलेबी का नियम से प्रातःकाल सेवन करें, तो बार-बार क जन्म-मरण से मुक्ति मिलती है। जलेबी के अलावा अन्य मिठाई की कभी देखें भी नहीं। एक बहुत मशहूर कहावत है कि- तुम तो जलेबी की तरह सीधे हो एक लोक गीत है – ■ मन करे खाये के जिलेबी ■ जब मोसे बनिया पैसा माॅंगे, वाये दूध-जलेबी खिलादऊॅंगी जलेबी बनाने हेतु आवश्यक सामग्री:- मैदा 900 ग्राम, उड़द दाल 50 ग्राम पानी में गला कर पीस कर 500 ग्राम मैदा में 50 ग्राम दही मिलाकर दो दिन पूर्व खमीर हेतु घोल कर रखे शेष मैदा जलेबी बनाते समय खमीर में मिलाये शक्कर करीब 1 किलो 300-400 ML पानी में डालकर चाशनी बनाये। जलेेबी को बहुत स्वादिष्ट बनाने के लिए चाशनी में एक चम्मच नीबू का रस और केशर मिला सकते हैं। जलेबी के खाने से लाभ…. एषा कुण्डलिनी नाम्ना पुष्टिकान्तिबलप्रदा। धातुवृद्धिकरीवृष्या रुच्या चेन्द्रीयतर्पणी।। (आयुर्वेदिक ग्रन्थ भावप्रकाश पृष्ठ ७४०) अर्थात – जलेबी कुण्डलिनी जागरण करने वाली, पुष्टि, कान्ति तथा बल को देने वाली, धातुवर्धक, वीर्यवर्धक, रुचिकारक एवं इन्द्रिय सुख और रसेन्द्रीय को तृप्त करने वाली होती है। जलेबी का अविष्कार… दुनिया में सर्वप्रथम जलेबी का अविष्कार किसने किया यह तो ज्ञात नहीं हो सका। लेकिन उत्तरभारत का यह सबसे लोकप्रिय व्यंजन है। भारत की जलेबी अब अंतरराष्ट्रीय मिठाई है। प्राचीन समय के सुप्रसिद्ध हलवाई शिवदयाल विश्वनाथ हलवाई के अनुसार जलेेबी मुख्यतः अरबी शब्द है। तुर्की मोहम्मद बिन हसन “किताब-अल-तबिक़” एक अरबी किताब जलेबी का असली पुराना नाम जलाबिया लिखा है। 300 वर्ष पुरानी पुस्तकें “भोजनकटुहला” एवं संस्कृतमें लिखी “गुण्यगुणबोधिनी” में भी जलेबी बनाने की विधि का वर्णन है। घुमंतू लेखक श्री शरतचंद पेंढारकर ने जलेबी का आदिकालीन भारतीय नाम कुण्डलिका बताया है। वे बंजारे बहुरूपिये शब्द और रघुनाथकृत “भोज कौतूहल” नामक ग्रन्थ का भी हवाला देते हैं। इन ग्रंथों में जलेबी बनाने की विधि का भी उल्लेख है। मिष्ठान भारत की जान जैसी पुस्तकों में जलेबी रस से परिपूर्ण होने के कारण इसे जल-वल्लिका नाम मिला है। जैन धर्म का ग्रन्थ “कर्णपकथा” में भगवान महावीर को जलेबी नैवेद्य लगाने वाली मिठाई माना जाता है।

अनोखीबाई

अनोखीबाई अनोखीबाई की आदत थी बात से बात निकालना और फिर उसे फिरकी पर चढ़ाकर सूत की तरह कताई करना। जब तक वह हर किसी की जड़ें न खोद लेती उसे चैन न पड़ता। सुबह तक वह सबसे पहले अखबार उठा लेती और सोये हुए पति के मुंह से मक्खियां उड़ाते हुए बेपर की उड़ाने लगती। कोई बुरी खबर होती तो चिल्‍लाने लगती,देखो तो संसार में अनार्थ हो रहा है,एक तुम हो जो अब तक सो रहे हो। यह देखते हो कोई रोहिणी चक्‍कर काटने लगी है धरती के।यहां आवे तो नासपीटी की हड्डी-पसली एक कर दूं। अनोखीबाई के पति शामतलाल की शामत तो उसी शाम आ गयी थी जिस दिन उन्‍होंने शादी का फंदा गले में डाला!अनोखीबाई के माता-पिता परिचित थे। वे शामतलाल को समझाते हुए बोले थे,बेटा!अब तुम ही ध्‍यान रखना।‘ शामतलाल का तभी माथा ठनका और उसने घूंघट में से ताकती-झांकती आँखों में हाथ-पांव मारने शुरू कर दिये थे।अनोखी बाई के मधुर स्‍वभाव से आस पड़ोस को परिचित होने में शायद देर लगी हो, पर शामतलाल को कुछ घंटे में ही सब समझ आने लगा था। इसीलिए पहले दिन से ही वे अपनी प्रिय धर्म पत्‍नी के लिए चाय बनाने लगे।अनोखीबाई उन्‍हें बदले में ताजा समाचार सुनाती।समाचारों पर अपने कमेंट देती और शाम को जब शामतलाल लौटकर आते तो वह फिर उनका मगज चाटना शुरू कर देती।शाम की चोरी या डकैती की ताजा खबरें वह चाय के साथ ऐसे पेश करती जैसे पति को गरमागरम समोसे या कचौरी दे रही हो। एक दिन शामतलाल लौटे तो अनोखी बोली, ‘’सुनते हो जी वह अन्‍नपूर्ण के घर डाकू आए और पच्‍चीस हजार के जेवर ले गए।‘’ शामतलाल घबराए से बोले,‘’तब तो बहुत बुरा हुआ।‘’ ‘’बुरा?अरे इस अन्‍नपूर्ण के घर तो कभी फूटी कौड़ी नहीं होती।नकली गहने,नकली मोती और मिलावट उसका पहला धर्म है।पच्‍चीस हजार ताकती जेवर की तो बात ही छोड़ो,उसके घर एक सुच्‍चा छल्‍ला भी नहीं! मैं तो कहती हूं चोर डाकुओं को ये अखबारें पढ़कर अपना स्‍टेटमेंट देना चाहिए।बताना चाहिए कि खबर झूठ है।इसके घर तो कानी कौड़ी न पाकर चोरों ने सिर पीट लिया होगा।या फिर दया आई हो तो वे कुछ माल भी छोड़ गए हों।मैं अन्‍नापूर्णा को खूब जानती हूँ।'' शामतलाल ने अनोखीबाई की इस अनोखी बात पर एक ठण्‍डी सांस भरते हुए कहा, ’शुक्र है तुम किसी चोर या उठाईगीर की बीबी नही,वरना तुम तो सलाह देकर उसकी ऐसी मति फेर देती कि वह बेचार अपना भांडाफोड करके जेल की हवा खा रहा होता।‘’ हवा खाने की बात पर अनोखीबाई की नजर अखबार में पंखे से लटक-कर आत्‍महत्‍या करने वाले तीन व्‍यक्तियों पर पड़ गई।अब तो शमतलाल की शाम के चाय पानी का भी स्‍कोप खत्‍म हो गया।अनोखी वहीं धम्‍म से बैठ गई और बोली,’समझ नहीं आता कि इस उमस भरी गर्मी में,लोगों को हवा खाने का इना चाव चढ़ता है कि वे पंखे से ही लटक जाते हैं।यह देखो जी, अनोखी ने फिल्‍मी हीरोइनों की पंखों से लटकने वाली कतरनें सम्‍मुख रख दीं। फिर बोली,’अच्‍छा यह तो कहो जब मरने के लिए उमदा से उमदा तरीके मौजूद हैं, ऊंची से ऊंची हैं तो फिर यह पंखों से लिपट मरने का शोक क्‍यों सिर पर सवार होने लगा है।हर रोज कितने ही पंखे से लटके लोग मिलते हैं। गोया पंखे का काम हवा देना न होकर लोगों को लटक जाने की प्रेरणा देना हो गया। पंखें से साड़ी लटकाना,साड़ी का फंदा गले में डालना,क्‍या है यह सब?’’ शामतलाल बोले–‘’सारा धंधा साड़ी के फंदे से शुरू होता है। हर रोज नयी साड़ी की मांग,बढ़ती महंगाई,सबका गला घोंट रही है।‘’पर अनोखी ने शामतलाल की बात तेजी से काटते हुए कहा–’साड़ी का फंदा किसी को नहीं मारता।यह तो रेशमी जकड़ है।बात कुछ और ही लगती है।एक बात बताओ,ये सब लोग किसी कम्‍पनी के पंखे से लटके हैं।आज तक तो किसी कंपनी का यह विज्ञापन नहीं सुना,हमारी कंपनी के पंखे खरीदिए,लटक जाएं तो भी पंखे को आंच न आए,बढि़या मजबूत टिकाऊ पंखे!असल में लोडशैडिंग अगर इतनी ज्‍यादा रही तो पंखे हवा देने की बजाय सिर्फ इसी काम के लिए रह जाएंगे।‘’ फिर अनोखीबाई ने सिर उठाकर अपने छत के पंखे को गौर से देखा।जब से इस घर में यह पंखा आया था, भली प्रकार चल न पाया था।गर्मियों में प्रात: बत्‍ती बंद रहती और बंद न भी होती तो पूरा फ्यूज उड़ जाता। अनोखी को बार-बार लगता था कि न चलने की वजह से शायद यह पंखा भी बेकार हो चुका हो जैसे किसी के घुटने जुड़ गए हों। यही सोचकर वह फिर बोली, ‘’सुनते हो जी,मैं तो सोचती हूं कि यह तीन पंख वाला पंखा,एक जरा-सी हत्‍थी के सहारे तो खड़ा है,इससे कोई लटक ही कैसे सकता है।‘’ ‘’अनोखीबाई को एकटक पंखे को निहारते देख शामतलाल का माथा ठनका।वे बोले,‘’लटकने वाली तो लटक गई पर पीछे वालों को तो उमस भरी गर्मीं में तड़पने को छोड़ गई। पंखा तो फिर भी पंखे वाले से सुधर सकता है।‘’ शामतलाल ने अनोखीबाई की आंखों में बढ़ती हुई उत्‍सुकता देखी तो उन्‍हें खटका लगा। वे तुरंत बोल उठे,‘’दरअसल यह पंखे से लटकने का माजरा ही कुछ और है। तुम मत सोचो वरना मेरी मुसीबत हो जाएगी। तुम्‍हारी यह ढाई मन की देह पंखा बेचारा नहीं संभल पाएगा। और पंखे के साथ-साथ छत भी नीचे होगी। तुम एक हाथ में छत थामे दूसरे हाथ में उस गरीब पंखे के पंखों को,मुर्गे के पंखों की तरह तोड.,मरोडकर,मेरी राह में आंखें बिछाए खड़ी होगी और तुम तो जानती हो आजकल छतें बन पाना कितना महंगा पड़ता है।‘’ और उस दिन से शामतलाल हर रोज अपने कमरे में लगे इकलौते पंखे के लिए प्रार्थना करके जाते हैं। और दफतर से आते ही उसे सही सलामत पाकर खुदा से पंखे की लम्‍बी उमर के लिए खैर मनाते हैं!

वीर शम्भा जी

वीर शम्भा जी का जन्म 14 मई 1657 को हुआ था। आप वीर शिवाजी के साथ अल्पायु में औरंगजेब की कैद में आगरे के किले में बंद भी रहे थे। आपने 11 मार्च 1689 को वीरगति प्राप्त की थी। इस लेख के माध्यम से हम शम्भा जी के जीवन बलिदान की घटना से धर्म रक्षा की प्रेरणा ले सकते हैं. इतिहास में ऐसे उदाहरण विरले ही मिलते है। औरंगजेब के जासूसों ने सुचना दी की शम्भा जी इस समय आपने पाँच-दस सैनिकों के साथ वारद्वारी से रायगढ़ की ओर जा रहे है। बीजापुर और गोलकुंडा की विजय में औरंगजेब को शेख निजाम के नाम से एक सरदार भी मिला जिसे उसने मुकर्रब की उपाधि से नवाजा था। मुकर्रब अत्यंत क्रूर और मतान्ध था। शम्भा जी के विषय में सुचना मिलते ही उसकी बांछे खिल उठी। वह दौड़ पड़ा रायगढ़ की और. शम्भा जी आपने मित्र कवि कलश के साथ इस समय संगमेश्वर पहुँच चुके थे। वह एक बाड़ी में बैठे थे की उन्होंने देखा कवि कलश भागे चले आ रहे है और उनके हाथ से रक्त बह रहा है। कलश ने शम्भा जी से कुछ भी नहीं कहाँ बल्कि उनका हाथ पकड़कर उन्हें खींचते हुए बाड़ी के तलघर में ले गए परन्तु उन्हें तलघर में घुसते हुए मुकर्रब खान के पुत्र ने देख लिया था। शीघ्र ही मराठा रणबांकुरों को बंदी बना लिया गया। शम्भा जी व कवि कलश को लोहे की जंजीरों में जकड़ कर मुकर्रब खान के सामने लाया गया। वह उन्हें देखकर खुशी से नाच उठा। दोनों वीरों को बोरों के समान हाथी पर लादकर मुस्लिम सेना बादशाह औरंगजेब की छावनी की और चल पड़ी। औरंगजेब को जब यह समाचार मिला तो वह ख़ुशी से झूम उठा। उसने चार मील की दूरी पर उन शाही कैदियों को रुकवाया। वहां शम्भा जी और कवि कलश को रंग बिरंगे कपडे और विदूषकों जैसी घुंघरूदार लम्बी टोपी पहनाई गयी। फिर उन्हें ऊंट पर बैठा कर गाजे बाजे के साथ औरंगजेब की छावनी पर लाया गया। औरंगजेब ने बड़े ही अपशब्द शब्दों में उनका स्वागत किया। शम्भा जी के नेत्रों से अग्नि निकल रही थी परन्तु वह शांत रहे। उन्हें बंदी ग्रह भेज दिया गया। औरंगजेब ने शम्भा जी का वध करने से पहले उन्हें इस्लाम काबुल करने का न्योता देने के लिए रूह्ल्ला खान को भेजा। नर केसरी लोहे के सींखचों में बंद था। कल तक जो मराठों का सम्राट था। आज उसकी दशा देखकर करुणा को भी दया आ जाये। फटे हुए चिथड़ों में लिप्त हुआ उनका शरीर मिटटी में पड़े हुए स्वर्ण के समान हो गया था। उन्हें स्वर्ग में खड़े हुए छत्रपति शिवाजी टकटकी बंधे हुए देख रहे थे। पिता जी पिता जी वे चिल्ला उठे- मैं आपका पुत्र हूँ। निश्चित रहिये। मैं मर जाऊँगा लेकिन….. लेकिन क्या शम्भा जी …रूह्ल्ला खान ने एक और से प्रकट होते हुए कहां। तुम मरने से बच सकते हो शम्भा जी परन्तु एक शर्त पर। शम्भा जी ने उत्तर दिया में उन शर्तों को सुनना ही नहीं चाहता। शिवाजी का पुत्र मरने से कब डरता है। लेकिन जिस प्रकार तुम्हारी मौत यहाँ होगी उसे देखकर तो खुद मौत भी थर्रा उठेगी शम्भा जी- रुहल्ला खान ने कहा। कोई चिंता नहीं , उस जैसी मौत भी हम हिन्दुओं को नहीं डरा सकती। संभव है कि तुम जैसे कायर ही उससे डर जाते हो। शम्भा जी ने उत्तर दिया। लेकिन… रुहल्ला खान बोला वह शर्त है बड़ी मामूली। तुझे बस इस्लाम कबूल करना है। तेरी जान बख्श दी जाएगी। शम्भा जी बोले बस रुहल्ला खान आगे एक भी शब्द मत निकालना मलेच्छ। रुहल्ला खान अट्टहास लगाते हुए वहाँ से चला गया। उस रात लोहे की तपती हुई सलाखों से शम्भा जी की दोनों आँखें फोड़ दी गयी उन्हें खाना और पानी भी देना बंद कर दिया गया। आखिर 11 मार्च को वीर शम्भा जी के बलिदान का दिन आ गया। सबसे पहले शम्भा जी का एक हाथ काटा गया, फिर दूसरा, फिर एक पैर को काटा गया और फिर दूसरा पैर। शम्भा जी कर पाद विहीन धड़ दिन भर खून की तल्य्या में तैरता रहा। फिर सायंकाल में उनका सर काट दिया गया और उनका शरीर कुत्तों के आगे डाल दिया गया। फिर भाले पर उनके सर को टांगकर सेना के सामने उसे घुमाया गया और बाद में कूड़े में फेंक दिया गया। मरहठों ने अपनी छातियों पर पत्थर रखकर आपने सम्राट के सर का इंद्रायणी और भीमा के संगम पर तुलापुर में दांह संस्कार कर दिया गया। आज भी उस स्थान पर शम्भा जी की समाधी है जो पुकार पुकार कर वीर शम्भा जी की याद दिलाती है कि हम सर कटा सकते है पर अपना प्यारे वैदिक धर्म कभी नहीं छोड़ सकते। मित्रों शिवाजी के तेजस्वी पुत्र शंभाजी के अमर बलिदान यह गाथा हिन्दू माताएं अपनी लोरियों में बच्चों को सुनाये तो हर घर से महाराणा प्रताप और शिवाजी जैसे महान वीर जन्मेंगे। इतिहास के इन महान वीरों के बलिदान के कारण ही आज हम गर्व से अपने आपको श्री राम और श्री कृष्ण की संतान कहने का गर्व करते है। आइये आज हम प्रण ले हम उसी वीरों के पथ के अनुगामी बनेंगे।।।

Rasleela Nathdwara Style | Twin Eternals - Matter & Energy

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