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A personal blog by Pavan Kumar "Paavan"
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7:13 PM
Article Published by : PAVAN KUMAR SHARMA,' PAAVAN &MAAHIR
नाम में क्या रखा है? दिल में रखो तो बात बने! 'इज़्ज़त शब्दों की पोशाक में नहीं,नीयत की धड़कनों में रहती है'। कभी-कभी लोग नामों की इबारत में ऐसी गंभीरता ढूंढ लेते हैं,जैसे दिल का GPS वहीं अटका हुआ हो,या जैसे जीवन की पूरी श्रद्धा वहीं टंगी हो। आज एक भाई ने शिकायत दर्ज कराई कि- आप“हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम” या “हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा को" सिर्फ़ मुहम्मद कह देते हैं,इससे दुख होता है।" मैंने विनम्रता की चाय घोलते हुए कहा,कि भैया- हमारे यहां तो श्रीकृष्ण कभी कृष्ण,श्रीराम कभी राम,और हनुमानजी कभी हनुमान ही कह दिए जाते हैं! किसी की श्रद्धा को इससे चोट नहीं लगती,क्योंकि प्यार शब्दों की लंबाई से नहीं,दिल की चौड़ाई से चलता है। मैंने हल्की-सी शरारत के साथ पूछा कि अगर नामों को लेकर इतनी ही शाही गैरत है,और बात नामों की गरिमा तक जा ही पहुंची! तो क्या फिर अकबर बादशाह के आगमन के उद्घोष की तरह यूँ सम्बोधित किया जाए,अर्थात “आपका मतलब ये वाला अंदाज़ तो नहीं?” "शाहे-ंशाह,बादशाह अकबर आलमपनाह तशरीफ़ ला रहे हैं!" या अधिक फ़ारसी-राजसी रूप में: "हज़रत-ए-बादशाह अकबर,जलालुद्दीन मुहम्मद,आलमपनाह! बारगाह में तशरीफ़ ला रहे हैं!" या फिर, "बा-अदब! बा-मुलाहिज़ा! होशियार! हुज़ूर-ए-आलिया, बादशाह-ए-हिंद तशरीफ़ ला रहे हैं!" और साथ में एक दरबारी मुनादी ची (उद्घोषक) भी नियुक्त कर लिया जाए?
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